लखनऊ: प्रयागराज के संगम तट पर लगे माघ मेले में देश के कोने कोने से संत महात्मा और दूसरे धर्माचार्य आए हुए हैं, लेकिन श्रद्धालुओं के बीच कांटों वाले बाबा खासकर आकर्षित कर रहा है. यह बाबा एक तरफ कांटों के बिछौने पर ही श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं तो वहीं दूसरे तरफ कड़कड़ाती ठंड […]
लखनऊ: प्रयागराज के संगम तट पर लगे माघ मेले में देश के कोने कोने से संत महात्मा और दूसरे धर्माचार्य आए हुए हैं, लेकिन श्रद्धालुओं के बीच कांटों वाले बाबा खासकर आकर्षित कर रहा है. यह बाबा एक तरफ कांटों के बिछौने पर ही श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं तो वहीं दूसरे तरफ कड़कड़ाती ठंड में कंबल ओढ़ने के बजाय कांटों से ही अपने बदन को ढंके रहते हैं।
उनका पूरा शरीर कांटों से ढंके होने के कारण लोग इन्हें कांटों वाले बाबा के नाम से जानते हैं. यह बाबा अपने शरीर को कंटीली झाड़ियों से घेरकर डमरू बजाते हुए जब श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं तो भक्तों में उनके नाम का जयकारे लगाने वालों का तांता लग जाता है. कांटों का बिछौना और कांटों का ओढ़ना बाबा की यह अनूठी साधना उस संकल्प के लिए है जिसकी अब पूर्णाहुति हो चुकी हैं. हालांकि अपने संकल्प की पूर्णाहुति के लिए पिछले 33 सालों से अपने शरीर को इसी तरह रखे हुए है. बाबा का संकल्प भले ही 33 सालों बाद पूरा हो गया हो, लेकिन इसके बावजूद बाबा कांटों का बिस्तर छोड़ने को तैयार नहीं है. एक संकल्प के पूरा होने के बाद उन्होंने अब नया संकल्प ले लिया है।
आपको बता दें कि कांटों वाले बाबा का नाम रमेश जी महाराज है. इनका जन्म प्रयागराज के एक छोटे से गांव में हुआ. वहीं साल 1990 में रामलला के भव्य मंदिर निर्माण के लिए देशभर में आंदोलन हो रहा था तब रमेश बाबा की उम्र महज 17 साल की थी. वह भी कारसेवक बनकर अयोध्या गए, लेकिन वहां रामभक्तों के साथ होने वाले पुलिसिया सलूक से रामलला के अपने धाम में विराजमान होने तक कांटों पर ही लेटे रहने का संकल्प ले लिया।