नई दिल्ली: ओलंपिक पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है. आज हम आपको जिस शख्स से मिलवा रहे हैं वो एक नहीं बल्कि ओलंपिक में दो दो पदक जीतकर भारत का नाम रौशन कर चुका है. नाम है पहलवान सुशील कुमार.. वो सुशील कुमार जिसके लिए पहलवानी सिर्फ एक खेल नहीं बल्कि उसका जुनून है. सुशील कुमार आज कुश्ती की दुनिया में आज जाना-माना नाम बन चुके हैं.
26 मई 1986 को दिल्ली के एक जाट परिवार में जन्में सुशील कुमार सौलंकी बचपन से ही पहलवान बनना चाहते थे. उनके पिता एमटीएनएल में ड्राइवर के पद पर काम करते थे. सुशील कुमार के पिता और उनके चाचा भी पहलवान थे. उन्हीं को देखकर सुशील कुमार ने महज 14 साल की उम्र में ही कुश्ती की प्रैक्टिस शुरू कर दी थी. उनका सिर्फ और सिर्फ एक ही सपना था ओलंपिक में भारत के लिए मेडल जीतना.
साल 2010 में वर्ल्ड टाइटल जीतकर सुशील कुमार ने देश का सिर गर्व से उंचा कर दिया. इसके बाद लंदन ओलंपिक में सिल्वर और फिर बीजिंग ओलंपिक में ब्रांज मैडल जीतकर सुशील कुमार दो इंडिविजुअल ओलंपिक मेडल जीतने वाले पहले भारतीय रेसलर बने. भारत सरकार ने सुशील कुमार को राजीव गांधी खेल रत्न और पदमश्री सम्मान से नवाजा है.
सुशील कुमार अपनी हर जीत का श्रेय अपने माता पिता और अपने गुरु को देते हैं. सुशील कुमार के माता-पिता ने सीमित संसाधनों के बावजूद सुशील कुमार को हर वो सुविधा दी जो उन्हें कामयाब रेसलर के रूप में स्थापित कर सकती थी. उनके खान-पान से लेकर ट्रेनिंग तक उनके परिवार ने उनका पूरा साथ दिया और आज सुशील कुमार लाखों भारतीय पहलवानों के लिए मिसाल हैं.