जिंदगी ना मिलेगी दोबारा: मौत को मात देने वाले कारगिल युद्ध के हीरो मेजर डी पी सिंह की कहानी

'उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आँखें' ये पक्तियां उन जाबांज सैनिकों के लिए कही जाती हैं जो सरहदों पर दिन-रात जागते हैं ताकि हम चैन की नींद सो सकें.

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जिंदगी ना मिलेगी दोबारा: मौत को मात देने वाले कारगिल युद्ध के हीरो मेजर डी पी सिंह की कहानी

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  • September 13, 2017 3:20 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago
नई दिल्ली: ‘उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान हैं आँखें’ ये पक्तियां उन जाबांज सैनिकों के लिए कही जाती हैं जो सरहदों पर दिन-रात जागते हैं ताकि हम चैन की नींद सो सकें. आज हम आपको ऐसे ही जाबांच अधिकारी से मिलाने जा रहे हैं जो जिन्हें कारगिल युद्ध में डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया गया था लेकिन वो सूरमा मौत को भी मात देकर वापस लौट आया.
 
हम बात कर रहे हैं कारगिल युद्ध के हीरो मेजर डीपी सिंह यानी देवेंद्र पाल सिंह की. कारगिल युद्ध के दौरान मेजर डीपी सिंह युद्ध के मैदान में थे. दुश्मनों से लड़ाई के दौरान दुश्मनों का एक गोला मेजर डीपी सिंह के बेहद करीब आकर फटा जिसमें वो बुरी तरह जख्मी हो गई. उन्हें आर्मी अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया, लेकिन फिर जैसे चमत्कार हुआ और उनकी सांसें फिर से चलने लगीं. 
 
ऑपरेशन के दौरान मेजर देवेंद्र को बचाने के लिए डॉक्टरों को उनकी एक टांग काटनी पड़ी. ऑपरेशन के दौरान उनके पेट की भी कुछ अतड़ियां काटनी पड़ी. मेडर डीपी सिंह करीब एक साल तक अस्पताल में रहे और फिर उन्हें घर भेज दिया गया.  
 
 
टांग कटने पर भी मेजर देवेंद्र के हौंसले कम नहीं हुए, पहले बैसाखी और फिर कृत्रिम पैरों के सहारे उन्होंने दौड़ना शुरु किया और अब तक वो 20 हाफ मैराथन में हिस्सा ले चुके हैं. मेजर देवेंद्र के इसी जज्बे की वजह से आज उन्हें ब्लेड रनर के नाम से भी जाना जाता है. 
 

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