नई दिल्ली। श्रीलंका में विक्रमसिंघे की अगुवाई में नई सरकार ने अर्थव्यवस्था संकट से उबारने और देश की माली हालत को सुधार करने के लिए नई योजनाएं बनाने का प्रयास कर रही है. बता दें कि बीते कुछ समय से श्रीलंका आर्थिक सकंट से जूझ रहा है. इसी बीच अब श्रीलंका में विक्रमसिंघे की नई […]
नई दिल्ली। श्रीलंका में विक्रमसिंघे की अगुवाई में नई सरकार ने अर्थव्यवस्था संकट से उबारने और देश की माली हालत को सुधार करने के लिए नई योजनाएं बनाने का प्रयास कर रही है. बता दें कि बीते कुछ समय से श्रीलंका आर्थिक सकंट से जूझ रहा है. इसी बीच अब श्रीलंका में विक्रमसिंघे की नई सरकार बनी है. ये सरकार अब नई रणनीति बनाने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है. जिसमे राष्ट्रीय सरकारी एयरलाइन को बेचने की रणनीति भी शामिल है।
आर्थिक संकट से घिरी श्रीलंका की नई सरकार ने वित्तीय घाटे से उबरने और देश के माली हालत को स्थिर करने के लिए नई रणनीती तैयार की है. श्रीलंका सरकार ने तय किया है कि वह अपने सरकारी एयरलाइन को बेचने का मन बना चुकी है. प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने सोमवार को देश को संबोधित करते हुए कहा कि नई सरकार की श्रीलंकन एयरलाइंस के निजीकरण की योजना है. उन्होंने बताया कि श्रीलंकन एयरलाइंस को मार्च 2021 को समाप्त हुए साल में 45 अरब रुपये का घाटा हुआ था. विक्रमसिंघे ने कहा, ऐसा नहीं होना चाहिए कि इस घाटे का भार उन गरीबों को उठाना पड़े जिन्होंने कभी विमान में पैर तक नहीं रखा. हम उन गरीब लोगों पर इसका भार नहीं उठाने देंगे।
वित्तीय घाटे से उबरने और देश की माली हालत स्थिर करने के प्रयासों के तहत नई योजनाओं में एक योजना यह भी है कि सरकार के पास सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसे नहीं है. इसलिए सरकार को वेतन देने के लिए नई करेंसी प्रिंट कराने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिससे देश की करेंसी पर दबाव पड़ेगा. बता दें कि आगे देश के पास सिर्फ एक दिन का पेट्रोल स्टॉक बचा हुआ है और सरकार श्रीलंकाई समुद्री सीमा पर लंगर डाले खड़े कच्चे तेल के तीन जहाजों को भुगतान करने के लिए खुले बाजार से डॉलर जुटाने की उम्मीद कर रहे हैं।
कुछ महीने पहले श्रीलंका में आर्थिक संकट शुरू हुआ और अब दिवालिया होने का खतरा है. धीरे-धीरे यह साफ होता चला गया कि राजपक्षे परिवार ने अपने सियासी रसूख का बेहद गलत इस्तेमाल किया. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने कैबिनेट मंत्री में भी घोर भाई-भतीजावाद किया. देश दिन-ब-दिन पीछे चलता गया और राजपक्षे परिवार ऐश-ओ-आराम की जिंदगी जीता रहा. पानी जब गले तक आ गया तो राष्ट्रपति गोटबाया ने भाई महिंदा को प्रधानमंत्री को पद से हटा दिया. तब जाकर प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की अगुआई में नई सरकार बनी और अभी इसका विस्तार बाकी है।