औरतों के ख़िलाफ़ तेज़ाब फेंकने की कुप्रथा की असल वजह क्या है?

नई दिल्ली: हमारे समाज में बीते कई दशकों से हमने लड़कियों और महिलाओं के ऊपर तेज़ाब से हमलों के कई मामले देखे हैं। एक औरत जो सामाज में अपना मुकाम बनाना चाहती है, पढ़ना चाहती है, नौकरी करना चाहती है। उसे पता है कि घर में उसकी बूढ़ी मां है जिसके पास लाइसर्जिक ऐसिड नाम की दवा ख़त्म हो चुकी है, जिसके लिए वो औरत हर रोज़ तैयार होकर काम पर जाती है।

लेकिन घर के बाहर की दुनिया उसकी मजबूरी में एक अवसर देखती है। समाज के घटिया सोच के लोगों को लगता है कि एक मासूम लड़की को कैसे अपना शिकार बनाया जाए, कैसे उसे परेशान किया जाए। इन्हीं सब कारणों से पितृसत्तात्मक सोच से भरा वह आदमी उसे अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ते देखना नहीं चाहता है। उसे लगता है कि अगर औरत पढ़ लेगी और काम करके पैसे कमाएगी तो कभी भी उसकी ग़ुलाम नहीं रहेगी।

दिल्ली के मोहन गार्डन के 14 दिसंबर 2022 का वाक़िया

दिल्ली के मोहन गार्डन का 14 दिसंबर का वाक़िया बेहद डरावना है। एक लड़की के चेहरे पर दो लड़कों ने तेज़ाब से हमला करके उसे ज़ख्मी कर दिया। उसका चेहरा अब शायद पहले जैसा न रहे। यह तेज़ाब के छींटे लड़की के चेहरे पर ज़रुर फेंका गया है मगर इसका इरादा उसके हौसलों की उड़ान को रोकना है। भले ही समाज के कुछ बुरे लोग इस तरह के कामों से हमारे समाज में न्याय व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश करें लेकिन इससे हमारे समाज की बेटी डर नहीं सकती, घबरा नहीं सकती।

कानून क्यों नहीं रोक लगा पा रहा इन वारदातों पर?

सर्वोच्च न्यायालय ने तेज़ाब के खुलेआम बेचने और ख़रीदने पर रोक लगा दी है। सराकर के आदेश हैं कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों को तेज़ाब न बेचा जाए, लेकिन इसके बाद भी ऐसे मामलों पर रोक नहीं लग पा रही है।

आरोपियों को हिरासत में लिया जा चुका है और जांच चल रही है। ऐसा बताया जा रहा है कि अब से तेज़ाब के ऑनलाइन बिक्री पर भी रोक लगा सकती है। फ़िलहाल इस मामलों में सख़्त कानून की जरूरत महसूस हो रही है और किसी मज़बूत कानून से ही ऐसी घटिया हरकतों को रोका जा सकता है।

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