नई दिल्ली: यूनाइटेड नेशन्स हर साल लिस्ट ऑफ शेम जारी करता है और इस लिस्ट ऑफ शेम में आतंकवादी संगठनों के बीच इजरायल को डाल दिया गया है। ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई लोकतांत्रिक देश इस सूची में आया है। अब इजरायल अलकायदा बोको हराम जैसे इस्लामिक स्टेट जैसे बहेद कट्टर टेरर गुटों के बीच खड़ा किया गया है। बता दें कि इजरायल और हमास के बीच नौ महीने से जंग चल रही हैं। लेकिन इसकी शुरूआत हमास ने इजरायली पर हमले से हुई थी लेकिन अब यहूदी देश भी आक्रामक हो गया । अब वो हमास के ठिकाने वाले फिलस्तीन पर अटैक कर रहा है। इस बीच यूनाइटेड नेशन्स ने हमास के साथ इजरायल को भी लिस्ट ऑफ शेम में डाल दिया ।जिसमें सारे आतंकी देश शामिल है। आइए जानते है इससे क्या फर्क पड़ेगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ हर साल आंतकी संगठन और देश का नाम जारी करता है। इसमें वैसे आंतकी संगठन या देश शामिल होते है जहां पर लगातार युद्ध हो रहा हो। इसके अलावा उन ग्रुपों को भी जोड़ा जाता है, जिन्होंने संघर्ष के दौरान बच्चों पर विपरीत असर डालने वाला गंभीर उल्लंघन किया हो। बता दें कि लड़ाई के समय बच्चों पर असर को जांचने के लिए छह अपराधों को गंभीरता की श्रेणी में रखा गया है। इन अपराधों में से अगर कोई गुट या देश पांच अपराध कर लेता है तो वो लिस्ट ऑफ शेम में शामिल हो जाता है.
.आंतकी मंसूबों के लिए को शील्ड बनाना या उनको भर्ती करके जासूसी करना या लड़ाई में उनका इस्तेमाल करना
.युद्ध के दौरान बच्चों के ख़िलाफ़ यौन हिंसा
.स्कूलों और अस्पतालों पर हमला भी इस श्रेणी में आता है
.बच्चों का अपहरण करना ताकि दूसरे पार्टी को ब्लेकमैल किया जा सके
.बच्चों की हत्या करना या संघर्ष के चलते उनका अंपग हो जाना
.छठा अपराध है बच्चों सहित सभी नागरिकों को मानवीय सहायता से दूर रखना।
इस सूची में फिलहाल 53 आतंकी गुट और कई देश भी शामिल हैं। इनमें इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, बोको हराम, इराक, अफगानिस्तान, म्यांमार, सोमालिया, सीरिया और यमन के अलावा इजरायल का भी नाम है। पिछले साल ही रूस की सेना को भी लिस्ट ऑफ शेम में डाला गया। ऐसा यूक्रेन के साथ चल रहें युद्ध के बीच किया गया।
लिस्ट ऑफ शेम में आने पर सीधे तौर पर कोई असर नहीं होता है लेकिन इसमें शामिल होने वालों को खराब नजर से देखा जाता है। मॉनिटरी सपोर्ट करने वाली इंटरनेशनल संस्थाएं भी इन्हें फंड करने से बचती हैं जो एक बड़ा नुकसान है। इसके साथ ही बड़े ग्लोबल फैसलों में इनकी राय नहीं ली जाती है। बच्चों पर हिंसा की रिपोर्ट सार्वजनिक करने से यह भी हो सकता है कि इजरायल को सहयोग करने वाले देश नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उसे हथियार या दूसरी मदद से करने से पीछे हो जाए।
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