नई दिल्ली, संयुक्त अरब अमीरात में अब इफ्तार पार्टी को लेकर विवाद छिड़ता दिखाई दे रहा है. जहां इस इफ्तार में छः अलग-अलग धर्मों के लोग शामिल हुए थे. इसमें सिख, बोहरा, हिंदू, बौद्ध, यहूदी और इजिप्शियन कॉप्टिक चर्च से जुड़े ईसाई लोगों ने इफ्तारी की दावत ली थी.
इस तरह की इफ्तारी का आयोजन देश के इस्लामी मामलों के महकमे में किया गया था. जहाँ इसे आयोजित करने के तर्क ये था. जहां इस तरह की इफ्तारी का आयोजन करने वालों और समर्थकों का कहना है कि इस तरह के आयोजन से नस्लवाद कम होगा और सहिष्णुता को बढ़ावा मिलेगा और दूसरी ओर कुछ लोग इस कदम को अमीराती समाज की क़ीमत पर इसराइल के साथ रिश्ते मज़बूत करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं.
मुल्क के इस्लामिक अफ़ेयर्स एंड चैरिटेबल एक्टिविटिज़ डिपार्टमेंट के महानिदेशक डॉक्टर हमाद अल शैबानी का कहना है कि सऊदी अरब अमीरात में इस तरह की पहल पहली बार इंसानियत के नारे को बुलंद करने के लिए की गयी है. ये पहल सरकारी थी. हमाद ने आगे बताया की इस तरह की इफ्तार को अबसे रमज़ान के दूसरे रविवार को हर साल दुबई इफ़्तार के तौर पर आयोजित किया जाएगा.
‘दुबई इफ़्तार’ में यहूदी धर्म को शामिल करने पर भी इस आयोजन की आलोचना की जा रही है. जहां आलोचक ये भी कहते हैं कि इसराइल के साथ संबंध को सामान्य करने की ये कोशिश है. लेकिन इसे अमीराती समाज में इसराइलियों की घुसपैठ के तौर पर भी देखा जा रहा है.
ये विवाद केवल अरब के राजनितिक गलियारों का ही नहीं है बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी एक बहस के रूप में उभरा है. माइक्रो ब्लॉग्गिंग साइट ट्विटर पर बहुत लोगों ने इस इफ्तार पार्टी का विरोध किया है. और इसे ख़ारिज भी किया है. जहाँ एक सोशल मीडिया यूज़र ने कमेंट किया है कि- ‘दुबई में इस्लामिक अफ़ेयर्स डिपार्टमेंट तक भी नॉर्मलाइज़ेशन पहुंच चुका है.’
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