रूस-यूक्रेन नई दिल्ली, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से न सिर्फ दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया का आर्थिक नुकसान हुआ है. पूरी दुनिया प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध से प्रभावित हुई है. लेकिन जानकारी के अनुसार रूस की सेना ने इस युद्ध में सैकड़ों टैंक गंवा दिए. 2 महीने में गए सैकड़ों […]
नई दिल्ली, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से न सिर्फ दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया का आर्थिक नुकसान हुआ है. पूरी दुनिया प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इस युद्ध से प्रभावित हुई है. लेकिन जानकारी के अनुसार रूस की सेना ने इस युद्ध में सैकड़ों टैंक गंवा दिए.
यूक्रेन और रूस की लड़ाई में माना जाता है कि रूस को भी भारी नुक्सान झेलना पड़ा. जहां इस लड़ाई में केवल 2 महीने के भीतर ही सैकड़ों टैंकों का नुकसान रूस को हुआ है. जानकारों की मानें तो रूस का ये नुक्सान यूक्रेन के पास मौजूद एंटी टैंक हथियारों की वजह से हुआ है जो उसे पश्चिमी देशों ने दिए हैं. जानकारों की मानें तो रूस ने अपनी सैन्य ताकत का काफी खराब तरीके से इस्तेमाल किया है. इस कारण भी रूस ने कई सारे टैंक युद्ध क्षेत्र में खो दिए.
युद्ध को लेकर यूक्रेन की सेना जो दावा किया है उसके अनुसार रूस ने अबतक यूक्रेन में अपने कुल 680 से भी अधिक टैंक गँवा दिए हैं. यूक्रेन में रूस की हानि का अध्ययन करने वाले सैन्य और इंटेलिजेंस ब्लॉग – ओरिक्स की मानें तो रूस द्वारा इस जंग में 460 से ज़्यादा टैंक और 2,000 से ज़्यादा बख़्तरबंद गाड़ियां खोई गयी हैं. ये विश्लेषण कई तस्वीरों के आधार पर किया गया है जो यूक्रेन और रूस से युद्ध के समय में सामने आयी थी. दूसरी ओर रैंड कॉरपोरेशन और आईआईएसएस (इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़) की मानें तो लड़ाई के समय रूस ने यूक्रेन की ज़मीन पर 2,700 लड़ाकू टैंक तैनात किये थे.
रूस और यूक्रेन के युद्ध की शुरुआत में ही अमेरिका द्वारा यूक्रेन को करीब 2,000 जैवलिन एंटी टैंक मिसाइल भेट की गयी थी. इन मिसाइलों को अमेरिकी हथियार कंपनी लॉकहीड मार्टिन द्वारा बनाया गया है. बाद में भी अमेरिका ने करीब दो हज़ार मिसाइलें दी. इस मिसाइल के बारे में यूक्रेन का कहना है कि जैवलिन मिसाइल का जब इस्तेमाल किया जाता है तब ये टैंक के सबसे कमज़ोर हिस्से में जाकर फंसती है. उस हिस्से में ये फटती है जिससे टैंक पूरी तरह से तबाह हो जाता है.
रूस के आधे से अधिक टैंकों को न तो तबाह किया गया न ही उन्हें किसी भी प्रकार की क्षति पंहुचाई गयी. बल्कि इन टैंकों को कब्ज़े में ले लिया गया और फिर उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया गया. जानकारों का कहना है कि ये रूसी सेना की एक तरह की नाकामयाबी और अयोग्यता साबित हुई है.