नई दिल्ली। हिजबुल्लाह का गढ़ लेबनान कुछ समय पहले तक ईसाईओं का देश हुआ करता था। यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है बल्कि सिर्फ 50 साल पहले यहां के संसद में 60 फीसदी जगह ईसाई नेताओं के लिए सुरक्षित हुआ करती थी। फिर यहां सब बदल गया और आज के समय में यह मुस्लिम मेजोरिटी […]
नई दिल्ली। हिजबुल्लाह का गढ़ लेबनान कुछ समय पहले तक ईसाईओं का देश हुआ करता था। यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है बल्कि सिर्फ 50 साल पहले यहां के संसद में 60 फीसदी जगह ईसाई नेताओं के लिए सुरक्षित हुआ करती थी। फिर यहां सब बदल गया और आज के समय में यह मुस्लिम मेजोरिटी हो चुकी है। लेबनान अब इस्लामिक मुल्क बन चुका है। आइये जानते हैं कि आखिर एक ईसाई देश कैसे कुछ सालों में ही मुस्लिम बहुल बन गया।
पचास साल लेबनान क्रिश्चियन मेजोरिटी वाला देश था। यहां पर मुस्लिम आबादी 30 फीसदी से भी कम थी। यूएस स्टेट डिपार्टमेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब यहां पर 70 फीसदी से ज्यादा मुसलमान हैं जबकि बाकी अन्य में दूसरे धर्म के लोग हैं। 1970 तक पूरे मिडिल ईस्ट में लेबनान अकेला नॉन-मुस्लिम देश था। इसी बीच मुस्लिमों के बीच रहने वाले इसाईओं ने अपना धर्म परिवर्तन करना शुरू कर दिया। यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड की ऑनलाइन रिपोर्ट के मुताबिक कन्वर्जन के बाद उनका फिर से ईसाई बनना आसान नहीं था। क्योंकि इसके बाद मुस्लिमों ने उन्हें ईशनिंदा की सजा देना शुरू कर दिया।
इसके बाद मिडिल ईस्ट में हुए संघर्ष ने ईसाई और मुस्लिमों को आमने सामने कर दिया। लेबनान की क्रिश्चियन आबादी को तब जाकर पहली बार अहसास हुआ कि उनके देश में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी शरण लिए हुए हैं। इस वजह से वह कमजोर पड़ रहे। फिलिस्तीनी लड़ाई में ईसाई के खिलाफ खड़े हो गए। शरणार्थियों ने हिजबुल्लाह, अल-अमल और मुस्लिम सोशलिस्ट पार्टी के साथ मिलकर घरेलू युद्ध लड़ा। नब्बे के दशक में राष्ट्रपति का पद ईसाई के लिए आरक्षित कर दिया और प्रधानमन्त्री का मुस्लिमों के लिए। बाद में ईसाई देश छोड़कर दूसरे जगह जाकर बसने लगे। वहीं कई देशों के रिफ्यूजी लेबनान में आकर बस गए। इस तरह से आज लेबनान पूरी तरह से मुस्लिम देश बन चुका है।
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