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इच्छा-मृत्यु के लिए बना डाली ‘सुसाइड मशीन’, 1 मिनट से भी कम वक्त में सुला देगी मौत की नींद

नीदरलैंड के ऐम्स्टर्डैम में एक शख्स ने यूथेनेसिया यानी इच्छा-मृत्यु की चाह रखने वालों के लिए एक सुसाइड मशीन बनाई है. इस मशीन में बैठते ही बटन दबाने पर एक मिनट से भी कम वक्त में इंसान की मौत हो जाएगी. ऐम्स्टर्डैम में हाल ही में इसे प्रदर्शनी में लगाया गया था.

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Sucide Machine Amsterdam
  • April 16, 2018 12:07 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

ऐम्स्टर्डैमः नीदरलैंड की राजधानी ऐम्स्टर्डैम में यूथेनेसिया (इच्छा-मृत्यु) की पैरवी करने वाले एक शख्स ने सुसाइड मशीन बनाई है. इस मशीन में बैठने वाले शख्स को एक बटन दबाना होगा और एक मिनट से भी कम वक्त में उसकी मौत हो जाएगी. मशीन बनाने वाले शख्स फिलिप नित्सके (70) ने बताया कि इस मशीन की मदद से मौत को चुनना आसान हो जाएगा. यह खासकर उन लोगों की मदद करेगी जो लोग किसी बीमारी, बुढ़ापे या फिर किसी अन्य वजह से इच्छा-मृत्यु चाहते हैं.

इस मशीन को किसी कैप्सूलनुमा तरह से डिजाइन किया गया है. इसमें ताबूत और नाइट्रोजन गैस का कंटेनर जोड़ा गया है. पिछले हफ्ते इसे ऐम्स्टर्डैम में प्रदर्शनी में दिखाया गया. वहां पर आने वाले लोगों को बताया गया कि यह काम कैसे करती है. दरअसल इस मशीन में बैठने वाले शख्स को अंदर मौजूद एक बटन दबाना होगा. इस बटन को दबाते ही कैप्सूल में नाइट्रोजन गैस भर जाएगी और अंदर बैठे शख्स की एक मिनट से भी कम समय में मौत हो जाएगी.

3-डी ग्लास की मदद से वर्चुअल तौर पर वहां आने वाले लोगों को इसके असली एहसास से वाकिफ कराया गया. नित्सके कहते हैं कि वह इस साल के अंत तक मशीन बनाने के तरीके को ऑनलाइन डाल देंगे ताकि कोई भी इस मशीन को आसानी से बना सके. हालांकि यह मशीन विवादों में भी है. बायोमेडिकल एथिक्स के प्रोफेसर डेनियल कहते हैं कि यह मशीन लोगों को राहत देने के नाम पर मौत दे रही है. यह वास्तव में खराब दवा, वाहियात विचार और बेहद ही खराब पब्लिक पॉलिसी है.

मेडिकल छात्र रह चुके नित्सके कहते हैं कि वह अमेरिकन पैथोलॉजिस्ट जैक कोवेरकियान के काम से बेहद प्रभावित थे. जैक को डॉक्टर डेथ भी बुलाया जाता था. दरअसल जैक ने करीब 130 लोगों को खुदकुशी करने में मदद की थी. नित्सके इससे पहले भी सुसाइड मशीन जैसे कई प्रयोग कर चुके हैं. बता दें कि भारत में भले ही इच्छा मृत्यु कानूनन अपराध है, इस पर काफी लंबे समय से बहस भी चल रही है लेकिन कई यूरोपीय देशों में इसे कानूनी मंजूरी मिल चुकी है. हालांकि उन देशों में भी इसका काफी विरोध होता आया है.

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