नई दिल्ली: हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन समेत कई देशों पर रेसीप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जिसे लेकर चीन ने नाराज़गी जताई थी। चीन का कहना था कि व्यापार से जुड़े मसलों को बातचीत के ज़रिए सुलझाया जाना चाहिए। लेकिन अब चीन ने भी ट्रंप को करारा जवाब देते हुए अमेरिका पर 34 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया है। गौरतलब है कि अमेरिका ने पहले चीनी सामानों पर इसी दर से टैरिफ लगाने की घोषणा की थी।

चीन ने अमेरिका पर ठोका टैरिफ

चीन के वित्त मंत्रालय ने घोषणा की है कि 10 अप्रैल से अमेरिका से आने वाले सभी उत्पादों पर 34% अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा। यह फैसला उस ongoing ट्रेड टकराव को और बढ़ावा देगा, जो पहले से ही दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। यह कदम तब सामने आया है जब चीन ने अमेरिका से अपने टैरिफ हटाने की मांग की थी और चेतावनी दी थी कि वह अपने हितों की रक्षा के लिए ठोस जवाब देगा। यह नया टैरिफ अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की हालिया व्यापार नीतियों के जवाब में उठाया गया है।

ट्रंप की टैरिफ नीति क्या है?

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले चीन पर 20% टैरिफ लगाया था और अब इसे 34% और बढ़ाकर कुल 54% कर दिया है। यह आंकड़ा उस 60% के बेहद करीब है, जिसका जिक्र ट्रंप ने अपने चुनावी भाषणों में किया था। गौर करने वाली बात यह है कि चीन हर साल अमेरिका को 400 अरब डॉलर से ज्यादा का माल बेचता है, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में काफी अधिक है।

चीन का पलटवार

चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने बताया कि 16 अमेरिकी कंपनियों को उनकी एक्सपोर्ट कंट्रोल लिस्ट में शामिल कर लिया गया है। इसका मतलब यह हुआ कि अब इन कंपनियों के लिए चीनी बाज़ार और तकनीक तक पहुंचना आसान नहीं होगा।

इसके अलावा, चीन ने 11 अन्य अमेरिकी कंपनियों को अपनी ‘अविश्वसनीय संस्थाओं’ की सूची में डाल दिया है। यह जानकारी चीन के सरकारी मीडिया चैनल सीसीटीवी द्वारा दी गई। साथ ही चीन ने कुछ विशिष्ट वस्तुओं के निर्यात पर भी रोक लगाने का निर्णय लिया है। इनमें वे महत्वपूर्ण दुर्लभ तत्व शामिल हैं जो आधुनिक टेक्नोलॉजी, जैसे सेमीकंडक्टर्स, इलेक्ट्रिक वाहन और रक्षा उपकरणों के निर्माण में आवश्यक होते हैं — जैसे सैमरियम, गैडोलिनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम और स्कैंडियम।

राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला

चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अपने बयान में कहा कि यह कदम देश की सुरक्षा और रणनीतिक हितों को मजबूत करने के उद्देश्य से उठाया गया है। चीन का कहना है कि वह अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करते हुए अपने संसाधनों पर नियंत्रण रखेगा ताकि राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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