नई दिल्ली, श्रीलंका में एक ओर जहां जनता के बीच त्राहि त्राहि का माहौल है तो दूसरी तरफ सियासी भूचाल से मुश्किलें और बढ़ गई हैं. इस साल की शुरुआत में ही श्रीलंका अपने सदी के सबसे खराब आर्थिक संकट को झेल रहा था. इस संकट की मुख्य वजह तो कोरोना काल ही बताई जा रही थी लेकिन देखा जाए तो इसके पीछे और भी कई बड़े कारण हैं. आज श्रीलंका में नागरिक सरकार से असंतुष्ट हैं.
वह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. आज यानी शनिवार को तो देश की राजधानी कोलंबो में प्रदर्शन इतना उग्र हो गया कि प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के सरकारी निवास पर ही धावा बोल दिया. प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि राष्ट्रपति अपना इस्तीफ़ा दें. उग्र प्रदर्शन करने वाला ये देश आज इस स्थिति पर कैसे पहुंचा आइये इसके पीछे की पांच बड़ी वजहों को समझें.
श्रीलंका एक मध्य कमाई वाला विकासशील देश है. बात करें बीते दशक की तो इस दौरान श्रीलंका ने कई देशों से जमकर कई देशों से क़र्ज़ लिया. इतना ही नहीं देश ने इस क़र्ज़ का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया अधिकाँश इन पैसों का दुरूपयोग ही किया गया. इस समय देश में महंगाई दर मई में 39% तक पहुंच गई है. बीते साल श्रीलंका की करेंसी में भी 82% की गिरावट आई थी. मौजूदा समय में एक डॉलर की कीमत 362 श्रीलंकाई रुपए तक पहुंच गई है. इतना ही नहीं एक भारतीय रुपए की कीमत भी 4.58 श्रीलंकाई रुपए पहुँच चुकी है.
क़र्ज़ की बात करें तो पिछले साल श्रीलंका ने गंभीर वित्तीय संकट से निपटने के लिए चीन से अतिरिक्त 1 अरब डॉलर यानी करीब 7 हजार करोड़ का लोन लिया था इस लोन का भुगतान अब श्रीलंका किस्तों में कर रहा है. इस वजह से श्रीलंका आज दिवालिया होने की कगार पर आ गया.
साल 2019 में जब चुनाव जीतने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने टैक्स कटौती का लोकलुभावन दांव खेला, तो इसके नुकसान होने भी तय थे. इस नीति का देश को बड़े पैमाने में नुकसान हुआ. एक अनुमान के अनुसार, देश की टैक्स से कमाई में 30 फ़ीसदी की कमी आई, और धीरे-धीरे सरकारी खजाना खाली होने लगा. साल 1990 में श्रीलंका की GDP में टैक्स से कमाई की हिस्सा 20 फीसद रहा था जो घटकर केवल 10% रह गया. यह टैक्स और देश की कमाई में भारी गिरावट थी.
श्रीलंका के लिए साल 2019 बेहद निराशा वाला साल रहा था. जहां अप्रैल 2019 में ईस्टर संडे के दिन राजधानी कोलंबो के तीन चर्चों पर हुए हमलों में लगभग 300 लोगों की मौत हुई. इससे देश के टूरिज़्म को भारी झटका लगा. इसके बाद रही-सही कसर पूरी की महामारी ने. कोरोना काल में पूरी दुनिया में किसी का भी कहीं आना जाना नहीं था. इस कारण टूरिज्म सेक्टर ठप हुआ और साथ में ठप हुआ विदेशी मुद्रा भंडार। बता दें, पर्यटन श्रीलंका में विदेशी मुद्रा कमाने का तीसरा सबसे बड़ा माध्यम है. साल 2018 में श्रीलंका में 23 लाख टूरिस्ट आए थे, जिसमें साल 2019 के आने तक 21% की गिरावट आई आई.
भारत की तरह ही श्रीलंका में भी लोकतंत्र तो है लेकिन द्विपीय देश की राजनीति में परिवारवाद को साफ़ देखा जा सकता है. यहां की सबसे ज़्यादा ताकतवर दो राजनीतिक पार्टियां हैं जिनके फैसले पूरे देश को ले डूबे. ये पार्टियां हैं, श्रीलंका फ्रीडम पार्टी, जिसके मुखिया हैं- मैत्रीपाला सिरिसेना। दूसरी है श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना पार्टी- जिसके प्रमुख हैं, महिंदा राजपक्षे। साल 2015 से 2019 तक यानी कुल चार सालों तक देश के राष्ट्रपति रहे सिरिसेना पर भ्रष्ट होने के कई आरोप थे. साल 2018 में उनके चीफ ऑफ स्टाफ और अधिकारियों को रिश्वत लेने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया था. दूसरी ओर ताकतवर राजनीतिक परिवार माने जाने वाले राजपक्षे परिवार के कई गलत फैसलों ने भी श्रीलंका में त्राहि त्राहि का माहौल ला दिया है.
बीते साल यानी 2021 में गोटबाया राजपक्षे सरकार ने खेती को लेकर एक बड़ा फैसला किया. इसके अनुसार ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए श्रीलंका में खेती में केमिकल फर्टिलाइजर्स और कीटनाशकों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई. इससे हुआ ये कि अनाज उत्पादन में भारी गिरावट आई. उत्पादन घटने से अनाज के दाम बढ़े और मई में फूड-इंफ्लेशन 57.4% पर पहुंच गया इतना ही नहीं नॉन-फूड इंफ्लेशन बढ़कर 30.6% हो गया.
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