नई दिल्ली। बांग्लादेश में पूर्व पीएम शेख हसीना के इस्तीफे और अंतरिम सरकार के गठन के बाद वहां के हालात गंभीर हैं। शेख हसीना के इस्तीफे के बाद बांग्लादेश में इस्लामी कट्टरपंथियों की पकड़ मजबूत हो गई है। इसी के साथ वहां शरिया कानून की मांग भी बढ़ने लगी। वहां के लेखक और कार्यकर्ताओं को कहना है कि इसका खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ेगा। आज हम आपको बताएंगे कि शरिया कानून है क्या और इससे बांग्लादेश की महिलाओं के जीवन पर क्या असर पड़ेगा।
आपको बता दें कि शरिया इस्लाम की कानूनी व्यवस्था है जिसे इस्लाम की पवित्र किताब कुरान, सुन्नत और हदीस, पैगंबर मोहम्मद के कार्यों और कथनों से लिया गया है। शरिया कानून या शरीयत में पुरुषों और महिलाओं को अलग-अलग माना जाता है क्योंकि शारीरिक रूप से दोनों एक जैसे नही हैं। इसी तरह उनके अधिकारों में भी जमीन आसमान का अंतर हैं। महिलाओं को समान अधिकार तो दूर उन्हे मूलभूत अधिकार भी प्राप्त नही है।
जानकारी के अनुसार शरिया कानून में महिलाओं की शिक्षा पर कोई प्रतिबंध नही है लेकिन शरिया कानून लागू होने के बाद इस्लामी कट्टरपंथी महिलाओं की आजादी खत्म कर देते हैं और उनकी आजादी खत्म हो जाती है। विशेषज्ञों का कहना है कि शरिया कानून लागू होने के बाद इस्लामी कट्टरपंथी महिलाओं की सुरक्षा पर हावी होकर उनकी अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगा देंगे।
लेखिका नसरीन ने दावा किया कि शरिया कानून लागू होने के बाद महिलाओं को कोई अधिकार नहीं मिलेंगे। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में असहिष्णुता बढ़ रही है, अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है। उनका दावा है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और शरिया कानून लागू होने के बाद जल्द ही महिलाएं बिना किसी अधिकार के रह जाएंगी। उन्होंने कहा कि शेख हसीना के शासन में कई संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था पर वह फिर से उभर रहे हैं।
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