नई दिल्ली: कनाडा में अलगाववादियों द्वारा श्वेत कनाडाई लोगों को “घुसपैठिए” कहने और उन्हें इंग्लैंड और यूरोप लौटने की सलाह देने का एक वीडियो वायरल हो रहा है। ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में आयोजित नगर कीर्तन के दौरान हुई इस घटना पर कनाडा और भारत दोनों में बहस छिड़ गई है. असली मालिक हम हैं […]
नई दिल्ली: कनाडा में अलगाववादियों द्वारा श्वेत कनाडाई लोगों को “घुसपैठिए” कहने और उन्हें इंग्लैंड और यूरोप लौटने की सलाह देने का एक वीडियो वायरल हो रहा है। ब्रिटिश कोलंबिया के सरे में आयोजित नगर कीर्तन के दौरान हुई इस घटना पर कनाडा और भारत दोनों में बहस छिड़ गई है.
वायरल वीडियो में अलगाववादी कहते नजर आ रहे हैं, ”कनाडा के असली मालिक हम हैं.” उनका कहना है कि श्वेत नागरिकों को “यूरोप और इज़राइल” लौट जाना चाहिए। इस वीडियो को कनाडा के स्थानीय पत्रकार डेनियल बोर्डमैन ने ‘एक्स’ पर शेयर किया था. दो मिनट की इस क्लिप में अलगाववादी न सिर्फ श्वेत नागरिकों को निशाना बनाते दिखे, बल्कि कनाडा पर अपना मालिकाना हक भी जताते दिखे.
अब जा कर खालिस्तानी सही मांग उठा रहे हैं
“अंग्रेजों कनाडा छोड़ो”
“हम इस देश के मालिक हैं”
” Simon go back” सुनने के बाद गोरे अंग्रेजों को कोई हक नही है कनाडा में रहने का. pic.twitter.com/DzBzmp8AyZ
— Ankit Kumar Avasthi (@kaankit) November 14, 2024
वीडियो में व्हेल के सिर के नीचे अंतरराष्ट्रीय झंडे नजर आ रहे हैं, जबकि कनाडा के झंडे की मौजूदगी लगभग नगण्य थी. इस दृश्य ने कनाडा की बहुसांस्कृतिक छवि और उसके नागरिकों के अधिकारों पर सवाल उठाए। अविश्वासी दस्तावेज़ बयान कर रहे थे कि यह देश उनका है और दस्तावेज़ों को इसे छोड़ देना चाहिए।
इस घटना का असर न सिर्फ कनाडा के सामाजिक ताने-बाने पर बल्कि वहां की राजनीति पर भी पड़ रहा है. अलगाववादियों द्वारा दिया गया यह बयान विवाद का नया कारण बन गया है. यह मुद्दा नागरिकता और अधिकारों के सन्दर्भ में नपुंसक प्रश्न खड़ा कर रहा है। क्या कनाडा में अलगाववादियों ने अपनी पहचान और विचारधारा को लेकर हंगामा मचाना शुरू कर दिया है. या फिर ये बयान कनाडा के बहुजातीय और बहुसांस्कृतिक समाज के ख़िलाफ़ है?
इस घटना ने भारत और कनाडा के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और अधिक जटिल बना दिया है। अलगाववादी गतिविधियां लंबे समय से भारत के लिए चिंता का विषय रही हैं। कनाडा में अलगाववादियों की बढ़ती सक्रियता पर भारत कई बार आपत्ति जता चुका है। वहीं, कनाडा इसे “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के तहत देखने की कोशिश करता है।
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