Russia Ukraine War: अमेरिका का भारत को बड़ा ऑफर, क्या पुतिन से दोस्ती तोड़ेंगे मोदी?

Russia Ukraine War नई दिल्ली, यूक्रेन संकट को लेकर भारत ने पश्चिमी देशों द्वारा बार-बार अपील किए जाने के बाद भी यूक्रेन पर हो रहे रूसी हमले (Russia Ukraine War) की निंदा नहीं की. भारत के इस रुख के पीछे एक बड़ी वजह रूस से दोस्ती तो है की, दूसरी बड़ी वजह है भारत की […]

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Russia Ukraine War: अमेरिका का भारत को बड़ा ऑफर, क्या पुतिन से दोस्ती तोड़ेंगे मोदी?

Aanchal Pandey

  • March 23, 2022 7:40 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 years ago

Russia Ukraine War

नई दिल्ली, यूक्रेन संकट को लेकर भारत ने पश्चिमी देशों द्वारा बार-बार अपील किए जाने के बाद भी यूक्रेन पर हो रहे रूसी हमले (Russia Ukraine War) की निंदा नहीं की. भारत के इस रुख के पीछे एक बड़ी वजह रूस से दोस्ती तो है की, दूसरी बड़ी वजह है भारत की हथियारों को लेकर रूस पर निर्भरता. अमेरिका भी भारत की इस मजबूरी को समझता है और इसीलिए अब उसने बड़ा दांव खेलते हुए भारत को एक जबरदस्त ऑफर दिया है.

अमेरिका करेगा भारत को रक्षा क्षेत्र में सहयोग

अमेरिका ने रूसी हथियारों की आलोचना करते हुए कहा है कि वो भारत की मदद करते हुए उसे रक्षा क्षेत्र में सहयोग करने के लिए काफी उत्सुक है. अमेरिका ने कहा कि भारत को इस समय ये सोचने की जरूरत है कि क्या हथियारों के लिए रूस पर उसकी निर्भरता ठीक है क्योंकि रूस की लगभग 60 फीसदी मिसाइल काम करने की स्थिति में नहीं हैं. अमेरिका ने आगे कहा कि भारत समेत तमाम देश ये देख सकते हैं कि रूस के हथियार अब कितना खराब प्रदर्शन कर रहे हैं.

क्या अमेरिका देगा भारत को सैन्य हथियार?

राजनीतिक मामलों पर अमेरिका की विदेश सचिव विक्टोरिया नुलैंड ने बुधवार को कहा कि रूस-यूक्रेन के बीच की जंग को लेकर उन्होंने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला से बात की है, अमेरिका भारत की भारत की मजबूरी को समझता है इसलिए अमेरिका भारत को रक्षा आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भरता खत्म करने में मदद करने के लिए तैयार है.

वहीं, रूस और चीन के संबंधों पर उन्होंने कहा कि, ‘यूक्रेन पर हमले के बीच रूस ने चीन से मदद मांगी है. रूस चीन से पैसों और हथियारों की मांग कर रहा है जो न तो अमेरिका के लिए सही है और न ही भारत के लिए. युद्ध की इस घडी में जब अतिवादी ताकतें एक हो रही हैं, भारत और अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देशों के लिए जरूरी है कि वो भी एक साथ खड़े हों.’

 

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