नई दिल्ली. ऋषि सुनक अब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए हैं, उन पर हर किसी को गर्व है. ख़ास बात ये है कि ऋषि सुनक के दुनिया के पावर सेंटर तक पहुंचने की यात्रा कोई एक दिन या महीने की नहीं बल्कि कई सालों तक, कई पीढ़ियों के संघर्ष की कहानी है. लगभग 90 साल […]
नई दिल्ली. ऋषि सुनक अब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए हैं, उन पर हर किसी को गर्व है. ख़ास बात ये है कि ऋषि सुनक के दुनिया के पावर सेंटर तक पहुंचने की यात्रा कोई एक दिन या महीने की नहीं बल्कि कई सालों तक, कई पीढ़ियों के संघर्ष की कहानी है. लगभग 90 साल पहले इस यात्रा की शुरुआत तब हुई थी, जब भारत का बंटवारा नहीं हुआ था. इस यात्रा की शुरुआत पंजाब से हुई और अब ये यात्रा उस जगह पूरी हो रही है जहाँ के लोगों ने कई सालों तक हमारे मुल्क पर राज किया. ये जगह 10 डाउनिंग स्ट्रीट, यानी ब्रिटेन के पीएम का आधिकारिक आवास है जहाँ से अब ऋषि राज की शुरुआत हो रही है.
पंजाब का वो परिवार कई दशकों तक भ्रमण करता रहा, ये अच्छी जिंदगी की तलाश में एशिया से अफ्रीका गए और फिर वहां से यूरोप. इन तीन महादेशों की यात्रा में सुनक परिवार की 3 पीढ़ियां गुज़र गई तब जाकर यहाँ ऋषि राज की शुरुआत हुई और भारतीय मूल के ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री का ताज मिला.
ये बात तकरीबन 90 साल पहले की है तब भारत का बंटवारा नहीं हुआ था, भारत के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला से एक खत्री युवा एक बेहतर जिंदगी की तलाश में सात समंदर पार जाकर बसने के लिए अपना बोरिया-बिस्तर समेट रहा था. खत्री पंजाब का वो समुदाय है जिसका कभी भी कारोबार में कोई दखल नहीं रहा, ये परिवार तब बही-खातें संभालने और क्लर्क का काम करता था.
भारत की आज़ादी से पहले साल 1935 के आस पास ऋषि सुनक के दादा रामदास सुनक पंजाब के गुंजरवाला से 5000 किलोमीटर लंबी यात्रा पर निकले थे. उस समय रामदास सुनक का लक्ष्य था अफ्रीकी महादेश में बसा छोटा सा देश केन्या. तब केन्या में भी अंग्रेजों का राज हुआ करता था, 5000 किलोमीटर की दूरी तय कर जब रामदास सुनक केन्या की राजधानी नैरोबी पहुंचे तो यहां भी उनका पुश्तैनी कौशल उनके काम आया और उन्हें क्लर्क की ज़िम्मेदारी सौंपी गई. ऋषि सुनक के दादा रामदास सुनक और दादी सुहाग देवी के छह बच्चें थे, तीन बेटे और तीन बेटियां. साल 1949 में ऋषि सुनक के पिता का जन्म हुआ तब रामदास सुनक ने दूसरा और सुनक परिवार ने तीसरा देश लांघा और ब्रिटेन पहुँच गए. भले ही परिवार सात समुन्दर पार बस गया हो लेकिन सुनक परिवार की शुरू से ही भगवान में आस्था थी. साल 1971 में उन्होंने वैदिक सोसाइटी हिंदू मंदिर की स्थापना की, साल 1980 तक वो इस मंदिर के ट्रस्टी थे. पिता के ही नक़्शे कदम पर चलते हुए ऋषि सुनक की भी शुरू से ही भगवान में आस्था थी.
ऋषि सुनक के ननिहाल पक्ष की अगर बात करें तो उनके नाना रघुवीर बेरी भी पंजाब के ही रहने वाले हैं. वो बतौर रेलवे इंजीनियर कार्यरत थे, लेकिन बेहतर करियर की तलाश में वो तंजानिया चले गए. यहाँ उनकी शादी ऋषि सुनक की नानी सरक्षा से हुई, सरक्षा मात्र 16 साल की थी जब उनकी शादी रघुवीर बेरी से हुई. इसके बाद ये परिवार ब्रिटेन चला गया, लेकिन वहां जाने में ही सरक्षा के सारे गहने बिक गए. सरक्षा और रघुवीर बेरी के तीन बच्चे हुए. इन्हीं में से एक थी ऊषा सुनक, ऊषा सुनक ने ब्रिटेन में फार्मासिस्ट की डिग्री हासिल की.
ब्रिटेन आकर रघुबीर बेरी ब्रिटिश सरकार के राजस्व विभाग में काम करने लगे, रघुबीर बेरी को उनके काम के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा सम्मानित किया गया और वे ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अम्पायर के सदस्य भी चुने गए.
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