नई दिल्ली: श्रीलंका में कल यानी 21 सितंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है. यह चुनाव ऐसे समय में हो रहा है जब द्वीप राष्ट्र आर्थिक संकट से परेशान है. राष्ट्रपति चुनाव में 1.7 करोड़ से ज्याद लोग मतदान करने के पात्र हैं.
नई दिल्ली: श्रीलंका में कल यानी 21 सितंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है. यह चुनाव ऐसे समय में हो रहा है जब द्वीप राष्ट्र आर्थिक संकट से परेशान है. राष्ट्रपति चुनाव में 1.7 करोड़ से ज्याद लोग मतदान करने के पात्र हैं. राष्ट्रपति चुनाव के लिए 39 दावेदारों ने नामांकन दाखिल किया था. हालांकि इसमें से एक प्रत्याशी की मौत हो गई, अब 38 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला हैं. वहीं पिछले राष्ट्रपति चुनाव में द्विध्रुवीय मुकाबले थे, इस बार के चुनाव में बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा.
आपको बता दें कि 75 वर्षीय रानिल विक्रमसिंघे श्रीलंका के मौजूदा राष्ट्रपति हैं. गंभीर वित्तीय संकट की वजह से व्यापक विरोध प्रदर्शन के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को इस्तीफा देने के बाद उन्होंने साल 2022 में पद संभाला था. इसके बाद विक्रमसिंघे राष्ट्रपति ने अभूतपूर्व आर्थिक संकट के दौरान द्वीप राष्ट्र का नेतृत्व किया. उन्होंने आर्थिक सुधार लाने के साथ आईएमएफ से राहत पैकेज हासिल किया.
बीते दो सालों में श्रीलंका ने कई प्रमुख आर्थिक आंकड़ों में सुधार किया है, जिसमें मुद्रास्फीति भी शामिल है जो दो साल पहले 70 % से घटकर करीब 5 % हो गई है. वहीं द्वीप राष्ट्र का विदेशी भंडार बढ़ने के साथ-साथ ब्याज दरों में गिरावट भी आई है. अल जज़ीरा के मुताबिक चुनाव को मौजूदा राष्ट्रपति के आर्थिक सुधारों पर “जनमत संग्रह” के रूप में देखा जा रहा है. विक्रमसिंघे ने अपना नामांकन दाखिल करने के बाद पिछले महीने संवाददाताओं से कहा था कि हमें अर्थव्यवस्था को स्थिर करना है. आइए हम सब मिलकर आगे बढ़ें. मैं आपका समर्थन मांग रहा हूं. वहीं यूएनपी नेता विक्रमसिंघे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं. उन्हें पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की एसएलपीपी पार्टी के एक बड़े वर्ग का समर्थन प्राप्त है.
वहीं राष्ट्रपति पद की दौड़ में साजिथ प्रेमदासा सबसे आगे हैं. वो एसजेबी के वर्तमान विपक्षी नेता हैं. वहीं पूर्व राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा के बेटे ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का वादा किया है. उन्होंने कहा है कि फिलहाल हमारे देश के 2.2 करोड़ लोग बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, अक्षमता, अयोग्यता और सार्वजनिक खजाने की लूट से पीड़ित हैं. एसजेबी को तमिल और मुस्लिम अल्पसंख्यकों का समर्थन प्राप्त है जो श्रीलंका की आबादी का क्रमशः 11% और 9.7% हैं.
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