नई दिल्ली: भारत में एक ऐसा भी गांव है जिनके बारे में सुनकर लोगों को भरोसा नहीं होता है. भारत में एक ऐसा भी गांव है जहां के लोग सुबह का नज़ारे हिंदुस्तान में देखते है लेकिन शाम का नज़ारे विदेश में. यह कभी कबार की बात नहीं है, बल्कि ऐसा प्रतिदिन होता है. इससे […]
नई दिल्ली: भारत में एक ऐसा भी गांव है जिनके बारे में सुनकर लोगों को भरोसा नहीं होता है. भारत में एक ऐसा भी गांव है जहां के लोग सुबह का नज़ारे हिंदुस्तान में देखते है लेकिन शाम का नज़ारे विदेश में. यह कभी कबार की बात नहीं है, बल्कि ऐसा प्रतिदिन होता है. इससे भी ज्यादा खास बात यह है कि इस गांव में रहने वाले लोगों को विदेश जाने के लिए वीजा और पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
नागालैंड राज्य के लोंगवा नमक गांव के लोग प्रतिदिन विदेश का दौरा करते हैं. यहां सदियों से एक क्रूर परंपरा चलती आ रही थी जिसमें गांव के लोगों अपने दुश्मनों के सिर को काटकर अलग कर देते थे. हालांकि, साल 1940 में हिंसात्मक परंपरा को पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया. बता दें कि नागालैंड के मोन जिले में यह गांव स्थित है. साल 1969 के बाद यहां पर सिर काटने वाले मामला दोबारा देखने को नहीं मिला है।
यहां के लोगों का रहन सहन किसी आदिवासी समाज के जैसे लगता है. आपको बता दें कि लोंगवा गांव का कुछ हिस्सा भारत में तो कुछ हिस्सा म्यांमार में स्थित है. गौरतलब है कि बंटवारे के दौरान अधिकारियों ने इस गांव के लिए कुछ नियम बनाए थे जिसमें उन्होंने तय किया था कि भारत-म्यांमार की सीमा रेखा इस गांव के ठीक बीच से होकर गुजरेगी लेकिन इसका प्रभाव गांव के रहने वाले लोगों पर नहीं पड़ेगा।
इस गांव से गुजरने वाली भारत-म्यांमार की सीमा पर बने बॉर्डर पिलर पर एक तरफ हिंदी में तो दूसरी तरफ बर्मीज में संदेश लिखा गया है. आपको बता दें कि लोंगवा गांन में रहने वाले लोगों को भारत- म्यांमार दोनों देशों की नागरिकता मिली हुई है।
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