मलेशिया में बच्चे न पैदा करना गैर इस्लामिक, सोशल मीडिया पर छिड़ी तीखी बहस!

मलेशिया में शादीशुदा जोड़ों के बीच संतान न पैदा करने की बढ़ती प्रवृत्ति ने सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है।

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मलेशिया में बच्चे न पैदा करना गैर इस्लामिक, सोशल मीडिया पर छिड़ी तीखी बहस!

Anjali Singh

  • September 10, 2024 10:12 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 months ago

नई दिल्ली: मलेशिया में शादीशुदा जोड़ों के बीच संतान न पैदा करने की बढ़ती प्रवृत्ति ने सोशल मीडिया पर एक नई बहस छेड़ दी है। धार्मिक प्राधिकरण और सामाजिक नेताओं के बीच इस विषय पर मतभेद उभरकर सामने आए हैं मलेशिया में कई शादीशुदा जोड़े अब संतान न पैदा करने का विकल्प चुन रहे हैं। इस प्रवृत्ति ने देश में एक गर्मागर्म बहस को जन्म दिया है। लोग संतान-मुक्त जीवन के फायदों और नुकसान पर चर्चा कर रहे हैं, और इसके धार्मिक पहलुओं को भी उठाया जा रहा है।

धार्मिक प्राधिकरण की ओर से विरोध

मलेशिया के धार्मिक मामलों के मंत्री, नईम मुख्तार ने इस प्रवृत्ति पर ऐतराज जताया है। उनका कहना है कि बच्चों का न होना इस्लामिक शिक्षाओं के खिलाफ है। उन्होंने कुरान की आयतों का हवाला देते हुए कहा कि बच्चों को परिवार में महत्वपूर्ण माना गया है और पैगंबर मोहम्मद ने भी संतान पैदा करने की सलाह दी थी। धार्मिक प्राधिकरण का मानना है कि बिना किसी ठोस कारण के संतान न पैदा करना इस्लामिक मान्यताओं के अनुरूप नहीं है।

स्वास्थ्य कारणों पर विचार

मलेशिया के फेडरल टेरिटरी मुफ्ती ऑफिस ने इस बात को स्वीकार किया है कि यदि स्वास्थ्य कारणों से कोई जोड़ा संतान नहीं चाहता, तो इसे अस्वीकार नहीं किया जाएगा। लेकिन बिना किसी वजह के संतान न पैदा करना इस्लाम में वर्जित माना जाता है।

महिलाओं के अधिकार पर बहस

हालांकि, परिवार और सामुदायिक विकास मंत्री, नैंसी शक्री ने संतान न पैदा करने की महिलाओं की इच्छा का साथ दिया है। उनका कहना है कि सरकार उन लोगों की मदद करेगी जो बच्चे चाहते हैं लेकिन बांझपन जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

सोशल मीडिया पर धार्मिक बहस

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर चल रही बहस मुख्यतः धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। कई लोग इसे गैर-इस्लामिक मानते हैं, जबकि अन्य इसे व्यक्तिगत अधिकार और आधुनिक जीवनशैली की आवश्यकता के रूप में देख रहे हैं।

मलेशिया में बच्चे न पैदा करने के इस मुद्दे पर समाज और धार्मिक प्राधिकरण के बीच जारी बहस ने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है: क्या व्यक्तिगत पसंद और धार्मिक शिक्षाओं के बीच संतुलन बनाना संभव है?

 

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