नई दिल्ली. अब तक कोरोनावायरस के कई वेरिएंट्स सामने आए हैं, दुनियाभर में कोविड-19 महामारी बहुत ही तेज़ी से फैले, जिसके चलते लाखों लोग मारे गए और करोड़ों लोग बीमार हुए. अब भी कोरोना के नए वैरिएंट्स सामने आ रहे हैं. किसी ने कहा कि ये वैरिएंट चमगादड़ से आए तो किसी ने कहा कि ये वेरिएंट पक्षियों से आए, लेकिन दुनिया में अगली महामारी इनमें से किसी जीव से नहीं आएंगे. ये महामारी आएगी पिघलते हुए ग्लेशियरों के नीचे से, दरअसल, ग्लेशियरों के नीचे कई प्राचीन बैक्टीरिया और वायरस दबे हैं, जो बाहर आए तो धरती पर तबाही मच जाएगी. इनसे समुद्री जीव संक्रमित होंगे और उनसे पक्षी और फिर अन्य जीव. वहीं, बाद में इससे इंसान भी संक्रमित हो सकते हैं.
बढ़ते वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन की वजह से बहुत ही तेज़ी से ग्लेशियर पिघलते जा रहे हैं, इन ग्लेशियरों के नीचे करोड़ों सालों से बैक्टीरिया और वायरस भी दफ़न है, ये वहीं पर प्रजनन करके अपनी पीढ़ियों को आगे बढ़ा रहे हैं, एक नई स्टडी में इस बात का खुलासा भी हुआ है कि आर्कटिक की ग्लेशियर झीलें खतरनाक महामारी फैलाने लायक बैक्टीरिया और वायरस के प्रजनन का केंद्र हैं, यहां से जो भी वायरस निकलेंगे उनसे ईबोला, इंफ्लूएंजा से भी भयानक महामारियां फैलेंगी.
हाल ही में वैज्ञानिकों ने आर्कटिक सर्किल के उत्तर में मौजूद लेक हेजेन की स्टडी की और फिर उन्होंने वहां कि मिट्टी और सेडिमेंट्स की जांच की, साथ ही डीएनए और आरएनए हासिल कर, उनकी सिक्वेंसिंग भी की ताकि वायरस, बैक्टीरिया का पता चल सके. इसी कड़ी में, एक कंप्यूटर एल्गोरिदम के जरिए यह पता लगाने की कोशिश की गई कि कौन से वायरस जानवरों के हैं. कौन से पेड़ पौधों के हैं और कौन से उस इलाके में फंगस है, इस स्टडी के बाद पता चला कि यहां से वायरस लीक का खतरा बहुत ज्यादा है. ये समुद्री जीवों से जमीनी जीव और उसके बाद इंसानों तक बहुत जल्दी पहुँच सकते हैं.
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