नई दिल्ली। रूस के शहर कजान में 16वें ब्रिक्स समिट का आयोजन हो रहा है। इस समिट में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस रवाना हो चुके हैं। बताया जा रहा है कि इस बार के ब्रिक्स समिट में कई बड़े फैसले लिए जा सकते हैं। इसके माध्यम से ब्रिक्स देश पश्चिम देशों का प्रभुत्व कम करने की कोशिश करेंगे।
दरअसल ब्रिक्स देश एक ऐसी रिजर्व करेंसी शुरू करने वाले हैं जो डॉलर की बादशाहत को खत्म कर सके। मंगलवार से शुरू होने वाली बैठक में ब्रिक्स के सदस्य देश ब्रिक्स करेंसी शुरू करने पर चर्चा को आगे बढ़ा सकते हैं। चीन के साथ जिस तरह से अमेरिका का ट्रेड वॉर चल रहा है और रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण डॉलर का प्रभुत्व बढ़ा है। ऐसे में नई करेंसी को लेकर अगर रजामंदी बन जाती है तो इससे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सिस्टम को चुनौती दी जा सकती है। साथ ही सदस्य देशों की आर्थिक ताकत भी बढ़ेगी।
मालूम हो कि मौजूदा समय में अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार में अमेरिकी डॉलर का बोलबाला है। दुनिया में 90 फीसदी कारोबार अमेरिकी डॉलर से किया जाता है। साथ ही 100 फीसदी तेल कारोबार अमेरिकी डॉलर से होता है। हालांकि पिछले साल से थोड़ा बहुत तेल कारोबार गैर अमेरिकी डॉलर में हुआ है। इसके बाद से ब्रिक्स देश अमेरिका की आक्रामक विदेश नीतियों और वैश्विक वित्तीय चुनौतियों से निपटने के लिए एक साझा नई करेंसी लेकर आना चाहते हैं। वो अमेरिकी डॉलर और यूरो पर वैश्विक निर्भरता को कम करना चाहते हैं। 14वें ब्रिक्स समिट के दौरान पहली बार नई ब्रिक्स करेंसी की बात की गई थी। अब इसे शुरू करने पर विचार किया जा रहा है।
ब्रिक्स करेंसी इन क्षेत्रों पर डालेगा असर
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