LAC: चीन और भारत दो ऐसे देश हैं जिनकी जनसंख्या विश्व की जनसंख्या का लगभग 40 फीसदी है। इन दोनों के बीच का अनुपात सीधे तीन अरब से अधिक लोगों को प्रभावित करता है. यही नहीं, दुनिया भर के अन्य देश पर भी इसका सीधा असर पड़ता हैं। अगर ये दोनों देश अच्छे दोस्त बन जाते हैं तो ये एक ऐसी ताकत बन सकते हैं जो दुनिया के लिए मिसाल कायम कर दे. लेकिन सवाल यह है कि क्या ऐसा हो सकता है। दोनों देशों के संबंधों पर नजर डालें तो यह संभव नहीं लगता।
खासतौर पर तब जब डोकलाम, गलवान के बाद इस तरह की हरकत चीनी सेना तवांग में करती है। यूं तो भारत और चीन के बीच कई ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं, लेकिन हम बात कर रहे हैं उन पांच मुद्दों की जो भारत-चीन की दोस्ती में सबसे बड़ा रोड़ा साबित होती हैं।
डोकलाम और गलवान के बाद भारत का चीन पर भरोसा पहले से ही कम था, लेकिन तवांग की इस घटना ने आग में घी डालने का काम किया. इन झड़पों का कारण सीमा विवाद है जो 1962 से सुलझा नहीं है। 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद से यह विवाद दोनों देशों के बीच से बढ़ता ही जा रहा है। यह सीमा विवाद 4,000 किलोमीटर लंबी सीमा को लेकर है। शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के एक दक्षिण एशिया विशेषज्ञ चाओ गनचेंग ने एक बार कहा था कि “दोनों देशों के बीच के रिश्ते तब तक बहुत अच्छे नहीं हो सकते जब तक कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हल नहीं हो जाता।”
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) चीन का सबसे अहम प्रोजेक्ट है, जो सिल्क रोड से जुड़ी है। इसे “वन बेल्ट, वन रोड” के नाम से जाना जाता है। इस योजना की शुरुआत चीन ने 2013 में की थी, लेकिन भारत लगातार इसका विरोध करता रहा है। इस प्रोजेक्ट में एशिया के साथ यूरोप और अफ्रीका के तमाम बड़े देशों का हाथ हैं। यह परियोजना यूरोप, अफ्रीका, खाड़ी देशों (गल्फ कंट्रीज) को सड़क और समुद्री मार्ग से जोड़ेगी। 2017 में भारत ने पहली बार इस प्रोजेक्ट का खुलकर विरोध किया था। जिसके बाद भारत इस BRI सम्मेलन का भी हिस्सा नहीं बना था. बाद में 2019 में चीन ने बांग्लादेश और भारत को इस प्रोजेक्ट से हटा दिया। अब चीन चीन-नेपाल, चीन-म्यांमार और चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर पर काम कर रहा है, लेकिन भारत का विरोध बर्दाश्त नहीं कर सकता।
एशिया में चीन और भारत एक दूसरे के सबसे बड़े विरोधी रहे हैं। सभी जानते हैं कि भारत-पाकिस्तान के रिश्ते अच्छे नहीं हैं। इसी का फायदा उठाकर चीन पाकिस्तान को भड़काने की कोशिश कर रहा है। वह OBOR परियोजना में पाकिस्तान की मदद लेने के लिए भारी निवेश भी कर रहा है। इसके अलावा आतंकियों को उसके प्रोजेक्ट में रोड़ा बनने से रोकने के लिए वह भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रायोजक भी बन रहा है। मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कर चीन ने ही अड़ंगा लगाया, जो उसकी बानगी थी। चीन ने पूर्वोत्तर में भी ऐसा किया है।
ब्रह्मपुत्र नदी को लेकर भी भारत और चीन के बीच एक बड़ा विवाद है। ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी इलाकों में चीन ने बांधों का निर्माण किया है. चीन हमेशा नदी के प्रवाह और क्षेत्रफल पर शेखी बघारता है। चीन में ग्रेविटी डैम प्रोजेक्ट को लेकर समय-समय पर कई बातें सामने आती रही हैं। भारतीय सीमा के भीतर ब्रह्मपुत्र नदी में आने वाले बदलाव को तिब्बत में बन रहे बांधों की साजिश माना जा रहा है। बरसात के मौसम में चीन से ब्रह्मपुत्र नदी में पानी पहुंचने के आंकड़े भी नहीं दिए जाते। तिब्बत से शुरू होकर भारत और बांग्लादेश से बहते हुए करीबन 2,900 किलोमीटर तक बह कर ये नदी बंगाल की खाड़ी तक जाती है. खबर है कि चीन ने इस नदी का पानी रोक दिया है और भारत जिससे कि बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में सूखा पड़ सकता है.
निर्वासित तिब्बती गुरु दलाई लामा का दस साल का आतिथ्य भी दोनों देशों के बीच बड़ी कटुता का स्रोत है। दरअसल, दलाई दामा चीनी सेना से भागकर मार्च 1959 में भारत में दाखिल हुए थे। बताया जाता है कि वह तवांग से ही भारत आए थे. उस समय भी चीन दलाई लामा को भारत में शरण देने के सख्त खिलाफ था, लेकिन भारत ने इस बात की परवाह नहीं की। इससे पहले भारत ने तिब्बत पर चीन के मनमाने कब्जे और उसके प्रस्तावित हस्तक्षेप के विरोध में एक पत्र भी भेजा था। यह भी 1962 में भारत-चीन युद्ध के मुख्य कारणों में से एक माना जाता है।
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