तेहरानः हिजाब एक बार फिर से सुर्खियों में है। आजकल ईरान में हिजाब को लेकर प्रदर्शन काफी तेज है। यह बीते दिनों की घटना है जिसमें हिजाब नहीं पहनने के चलते एक युवती को धार्मिक मामलों की पुलिस ने गिरफ्तार किया। और उसकी कस्टडी में पिटाई की गई। पिटाई से युवती की हालत गंभीर हो गई और कुछ दिनों में ही उसकी मृत्यु भी हो गई। इस युवती का नाम महसा अमीनी है। ईरान की आम जनता खासकर महिलाओं ने हिजाब से जुड़े कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रही है। माहसा अमीनी की मौत के हिजाब को लेकर हो रहे इस आंदोलन में महिलाए अपनी हिजाब उतारकर उसे जला रही हैं। अपने बालों को भी काट रही हैं। इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं हिजाब से जुड़ी कहानी , जो आजकल विश्वभर में चर्चा का विषय है।
हिजाब मुस्लिम देशों में एक पारंपरिक परिधान है। यह परिधान केवल महिलाओं के लिए होता है। हिजाब एक स्कार्फ जैसा चौकोर कपड़ा होता है। जिसका इस्तेमाल खासकर मुस्लिम महिलाएं अपने बाल, सिर और गर्दन को ढकने के लिए करती हैं। इसे पहनने को ईरान सहित कई मुस्लिम देशों में पहनने को लेकर सख्त नियम लागू है।
एक विदेशी मीडिया के रिपोर्ट के अनुसार हिजाब की शुरुआत धर्म से नहीं है। इसका वस्त्र के तौर पर प्रयोग भौगोलिक कारणों से है। इसे पहनावे के तौर पर पहनना मेसोपोटामिया सभ्यता के लोगों ने शुरू किया। उस समय तेज धूप, धूल और बारिश से सिर को बचाने के लिए लिनेन के कपड़े का इस्तेमाल होता था। इस कपड़े को सिर पर भी बांधा जाता था। इन बातों का जिक्र 13वीं शताब्दी में लिखे गए प्राचीन एसिरियन में देखने को मिलता है। वहीं चर्चित लेखक फेगेह शिराजी अपनी किताब ‘द वेल अनइविल्डे: द हिजाब इन मॉडर्न कल्चर’ में लिखते है कि सऊदी अरब की जलवायु की वजह से इस्लाम धर्म के आने से पहले ही महिलाओं में अपने सिर को ढकने का प्रचलन था। साथ ही इसे महिलाएं तेज गर्मी से बचने के लिए भी पहनती थी।
बेशक उस दौर में महिलाओं ने हिजाब का इस्तेमाल खुद को धूप, धूल से बचाने के लिए पहनना शुरू किया था। लेकिन यह पहनावा कुछ खास वर्गो तक ही सीमित था। वहीं उस समय गरीब महिलाओं और वेश्याओं के लिए इसके इस्तेमाल पर पाबंदी थी। साथ ही अगर इस कैटेगरी की कोई महिला हिजाब में दिखती थी तो उसके लिए सख्त सजा का प्रावधान भी था।
समय के साथ सभ्यताओं विकास हुआ। जिसके चलते वस्त्र और पहनावों में भी कई बदलाव आए। धीरे-धीरे हिजाब के नए प्रकार भी विकसित हुए। जब इसका इस्तेमाल बढ़ा तो यह धर्म से जुड़ता गया और कई देशों में इसे महिलाओं, बच्चियों और विधवाओं के लिए इसे पहनना कानूनन वैध कर दिया गया।
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