नौ महीने बाद अंतरिक्ष से पृथ्वी पर लौटी भारतवंशी सुनीता विलियम्स की पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है लेकिन यह बात कम ही लोगों को पता होगी कि उन्हें भारतीय व्यंजन और भागवत गीता बहुत पसंद है. अपनी अंतरिक्ष यात्रा में वह समोसे और गीता साथ लेकर गईँ थीं.
नई दिल्ली. सुनीता विलियम्स न सिर्फ अमेरिका बल्कि दुनिया का ऐसा नाम बन गयी हैं जिसके बारे में हर कोई अधिक से अधिक जानना चाहता है. सुनीता जैसे ही बुधवार को ड्रैगन कैप्सूल से पहले समुद्र में और उसके बाद धरती पर उतरी पूरी दुनिया मुस्करा उठी. भारतीयों में कुछ ज्यादा ही जोश दिखा, आखिर ऐसा क्यों न हो, वह भारतवंशी है और ऐसी उपलब्धि हासिल की है जिस पर दुनिया गर्व कर रही है.
अपनी तीसरी अंतरिक्ष यात्रा के साथ वह सबसे ज्यादा स्पेसवॉक करने वाली महिला बन गई हैं. पहले यह रिकॉर्ड पिग्गी वीटस्न के नाम था. सुनीता तीन अंतरिक्ष यात्राओं में कुल 62 घंटे 6 मिनट स्पेसवॉक किया है. वहीं पिग्गी वीटस्न के नाम 60 घंटे 21 मिनट स्पेसवॉक का रिकार्ड था. कभी सुनीता विलियम्स ने कहा था कि रिकार्ड बनते ही है टूटने के लिए और उन्होंने पिग्गी वीटस्न का रिकार्ड तोड़ दिया है.
सुनीता विलियम्स का का जन्म अमेरिका के ओहायो में 1965 में हुआ था और यहीं पर उनका लालन पालन हुआ. उनके पिता डा. दीपक पंड्या भारतीय हैं और इनका जन्म गुजरात के मेहसाणा जिले के गांव झूलासन में हुआ. दीपक पंड्या अहमदाबाद से डॉक्टरी की पढ़ाई कर अपने भाई के पास अमेरिका चले गये. यहां उन्होंने स्लोवेनियाई मूल की उर्सुलिन बोनी से शादी कर ली. उनके तीन बच्चे हुए जिसमें से एक सुनीता विलियम्स हैं. सुनीता के पिता हिंदू और मां कैथोलिक हैं. बेटी को किसी बंधन में नहीं बांधा गया और सीख मिली की सभी धर्मों का आदर करो.
डॉक्टर दीपक पंड्या रविवार के दिन भगवद्गीता लेकर चर्च चले जाया करते थे और अपने बच्चों को रामायण- महाभारत की कहानियां सुनाते थे. यहीं से उनके बच्चों में भारतीय परंपरा और संस्कृति में रुचि पैदा हुई. बेशक सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में पहुंच गई लेकिन अपने गांव झूलासन को नहीं भूलीं. वह 2007 और 2013 में दो बार गांव आईं. यह गांधीनगर से 40 किलोमीटर दूर है.
सुनीता को शुरू से ही व्यायाम और खेलकूद में रुचि थी, तैराकी तो मानो उनमें कूट कूटकर भरा है लिहाजा अपने भाई-बहनों के साथ तैरना सीखा. छह साल की उम्र से ही तैराकी करने लगी और कई पदक जीते. पशुओं से उन्हें लगाव है लिहाजा एक समय ऐसा आया जब वह पशु चिकित्सक बनना चाहती थीं. आवेदन भी किया लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था इसलिए उन्हें पसंदीदा कॉलेज में सीट नहीं मिली. सुनीता ने अपने भाई के सुझाव पर अमेरिकी नौसेना अकादमी में दाखिला लिया और उसके बाद वहां पहुंची जहां उन्हें पहुंचना था.
सुनीता विलियम्स 1993 में मैरीलैंड के नौसेना परीक्षण पायलट स्कूल में ट्रेनिंग ले रही थी, इस दौरान वह ह्यूस्टन स्थित जॉनसन स्पेस सेंटर पहुंची. यहां उनकी मुलाकात अंतरिक्ष यात्री जॉन यंग से हुई, उनके साथ काम किया और उन्हीं से प्रेरणा लेकर अंतरिक्ष में उड़ने का सपना देखा. इसके लिए नासा में आवेदन किया लेकिन उनका आवेदन रिजेक्ट हो गया.
सुनीता तय कर चुकी थीं कि अंतरिक्ष में जाना है. 1995 में फ्लोरिडा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग प्रबंधन में मास्टर डिग्री ली और 1997 में फिर से प्रयास किया. इस बार किस्मत साथ दे रही थी लिहाजा नासा ने उनका आवेदन स्वीकार कर लिया और 1998 में प्रशिक्षु अंतरिक्ष यात्री के रूप में उन्हें चुना गया. इसके आठ साल बाद 9 दिसंबर 2006 को वो वक्त आया जिसका उन्हें इंतजार था, वह अंतरिक्ष में पहुंचीं. वह भारतीय मूल की दूसरी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री बनीं.
समोसा-गीता लेकर अंतरिक्ष में गई विलियम्स
सुनीता विलियम्स करीब 12 साल पहले भारत आई और दिल्ली के नेशनल साइंस सेंटर में छात्रों से मुलाकात की थी और उनके साथ अंतरिक्ष के अपने अनुभव बांटे थे. उन्होंने बताया था कि पहली बार मैं काफी नर्वस थी लेकिन मुझे जाना था मैं गई, मैं फिर जाऊंगी और अंतरिक्ष में चल रहे प्रयोंगों में अपना योगदान दूंगी. सुनीता विलियम्स भारतीय खाने की काफी शौकीन हैं. उन्होंने छात्रों के बीच ये राज खोला था कि अंतरिक्ष में भी समोसे लेकर गई थीं और पढ़ने के लिए उपनिषद और गीता को साथ रखा था. इससे उन्हें काफी प्रेरणा मिलती है.
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