नई दिल्ली. चंद महीने पहले तक जो मालदीव चीन की माला जप रहा था और भारत को आंखें दिखा रहा था उसकी हेकड़ी निकल गई है. उसने भारत के सामने घुटने टेक दिये हैं. हर कोई यह जानना चाहता है कि चंद महीनों में आखिर ऐसा क्या हुआ कि मालदीव के राष्ट्रपति यू टर्न लेने […]
नई दिल्ली. चंद महीने पहले तक जो मालदीव चीन की माला जप रहा था और भारत को आंखें दिखा रहा था उसकी हेकड़ी निकल गई है. उसने भारत के सामने घुटने टेक दिये हैं. हर कोई यह जानना चाहता है कि चंद महीनों में आखिर ऐसा क्या हुआ कि मालदीव के राष्ट्रपति यू टर्न लेने को मजबूर हो गये. पिछले साल मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जु इंडिया आउट का नारा देकर सत्ता में आये थे और अपना पहला दौरा चीन का किया था. वहां से लौटते समय भारत को आंख दिखाई थी.
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर तीन दिवसीय मालदीव दौरे से वापस लौट आये हैं. उनका मालदीव में भव्य स्वागत किया गया. इससे पहले मालदीव के राष्ट्रपति जून में मोदी सरकार के शपथ ग्रहण में शामिल होने आये थे. तभी से लगने लगा था कि साल की शुरुआत से दोनों देशों के रिश्तों में जो बर्फ जमनी शुरू हुई थी अब पिघलने लगी है. आपको बता दें कि मोहम्मद मोइज्जु को चीन और तुर्की समर्थक व भारत विरोधी माना जाता है. उन्होंने सत्ता में आते ही भारतीय सैनिकों की वापसी और हाइड्रोग्राफ़िक सर्वे एग्रीमेंट को कैंसल कर दिया था.
सत्ता संभालने के बाद सबसे पहले चीन जाने वाले मोइज्जु ने वहां से लौटने के बाद भारत के खिलाफ जहर उगले थे लेकिन जैसे ही भारतीय पीएम मोदी ने लक्षद्वीप जाकर भारतीय टूरिस्ट प्लेस को दुनिया के सामने पेश किया मालदीव बिलबिला उठा था. उसके मंत्रियों ने भारत व पीएम मोदी के खिलाफ उल्टे सीधे बयान दिये थे. अब हकीकत पता चली है कि भारतीय टूरिस्टों की संख्या मालदीव मे कम हो गई है और उसकी आर्थिक स्थिति खराब होने लगी है.
मालदीव पर भारत का 400 मिलियन डॉलर बकाया है जिसमें से 50 मिलियन डॉलर मई में ड्यू हो गया और 50 मिलियन डॉलर सिंतबर में चुकाना है. लौटाने के लिए उसके पास पैसे नहीं है इसलिए मोइज्जु भारत से संबंध सुधारने में लगे हैं. उन्हें यह भी पता चल गया है कि अमेरिका और चीन जैसे देश तब तक किसी का साथ नहीं देते हैं जब तक कि उनका स्वार्थ नहीं सधता है. भारत ही ऐसा देश है जो पड़ोसी प्रथम की नीति का पालन करता है और उसके सुख दुख में काम आता है.
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