नई दिल्ली: एक प्रतिष्ठित भारतीय-अमेरिकी विशेषज्ञ का कहना है कि जब तक चीन खतरा बना रहेगा, भारत और अमेरिका के संबंधों(India-America Relations) में गहराव आता रहेगा. इसी के साथ ‘कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’’ के टाटा चेयर फॉर स्ट्रेटजिक अफेयर्स एशले टेलिस का भी यही कहना है कि आने वाले वर्षों में दोनों देशों के […]
नई दिल्ली: एक प्रतिष्ठित भारतीय-अमेरिकी विशेषज्ञ का कहना है कि जब तक चीन खतरा बना रहेगा, भारत और अमेरिका के संबंधों(India-America Relations) में गहराव आता रहेगा. इसी के साथ ‘कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस’’ के टाटा चेयर फॉर स्ट्रेटजिक अफेयर्स एशले टेलिस का भी यही कहना है कि आने वाले वर्षों में दोनों देशों के बीच ही नहीं बल्कि दोनों समाजों के बीच संबंधों में गहराई देखी जाएगी.
उनका कहना है कि “यह रिश्ता तब तक गहरा होता रहेगा जब तक चीन वहां मौजूद रहेगा, जिसे दोनों देशों को प्रत्यक्ष करना होगा.” चीन के साथ तनाव बनें रहने की वजह से दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक के साथ रिश्ते मजबूत करने के लिए अमेरिका भारत पर ध्यान केंद्रित कर रहा है.
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अमेरिका और चीन के बीच रिश्ते दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण और उलझे द्विपक्षीय संबंधों में से एक है. ये मामला नया नहीं है, 1949 के बाद से ही देशों ने व्यापार, जलवायु परिवर्तन, दक्षिण चीन सागर, ताइवान और कोविड-19 महामारी समेत कई मुद्दों पर तनाव और सहयोग दोनों में ही अपनी-अपनी भागीदारी रखी है. गलवान घाटी में जून 2020 में हुई भीषण झड़प के बाद भारत और चीन के बीच संबंधों(India-America Relations) में कड़वाहट आई थी, जिसमें दशकों तक दोनों पक्षों के बीच सबसे गंभीर सैन्यकृत संघर्ष था.
गलवान घाटी ही वो जगह है, जहां भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक विवाद हुआ था, जिससे भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर तनाव बढ़ गया था. इस घाटी को गलवान घाटी इसलिए बोलते हैं क्योंकि ये गलवान नदी से लगा हुआ इलाका है. ये इलाका युद्धसंबधी तौर पर काफी अहम है. माना जाता है कि चीन को ऐसा लगता है कि अगर गलवान नदी घाटी के पूरे हिस्से को अपने प्रभारी में नहीं करेगा तो भारत अक्साई चिन पठार तक आसानी से पहुंच सकता है. जिसकी वजह से चीन की पोजिशन कमजोर हो जाएगी. इसी को समझते हुए भारत भी इस इलाके को छोड़ना नहीं चाहता.