नई दिल्लीः कुछ ही घंटो बाद अमेरिका की जनता देश के विकास की दिशा तय करेगी। दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क के राष्ट्रपति बनने की दौड़ में दो नाम हैं। एक तरफ डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हैं तो दूसरी तरफ रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प हैं। आज हम आपको अमेरिकी चुनाव की पूरी प्रक्रिया के बारे में बताएंगे कि कैसे यह चुनाव भारतीय चुनावों से अलगे है। हर चार साल में होने वाले इस चुनाव की प्रक्रिया काफी जटिल है। चुनाव में कई चरण शामिल होते हैं, आइये जाने अमेरिकी चुनाव की पूरी प्रक्रिया।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया को समझने के लिए आपको तीन चरणों को समझना होगा, जिनमें प्राइमरी और कॉकस, राष्ट्रीय सम्मेलन, आम चुनाव अभियान और चुनावी कॉलेज वोट शामिल हैं। इससे पहले आपको बता दें इसमें दो मुख्य पार्टियाँ हैं, एक डेमोक्रेटिक और एक रिपब्लिकन। इन दोनों की उम्मीदवारी ही चुनाव की शुरुआत है।
अमेरिकी चुनाव की प्रक्रिया एक साल पहले शुरू हो जाती है। ये उम्मीदवार चुनावों में पैसा जुटाने के लिए रैलियां करते है और टीवी पर एक-दूसरे से सीधी बहस भी करते हैं।
सबसे पहले प्राइमरी और कॉकस में सभी 50 राज्यों, डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया और यूएस टेरिटरी में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को चुनने के लिए चुनाव होते हैं। दोनों ही बहुत महत्वपूर्ण हैं।
कॉकस- इसमें पार्टी के सदस्य खुद ही वोटिंग के बाद अपना सबसे अच्छा उम्मीदवार चुनते हैं। इसमें पसंदीदा उम्मीदवार के लिए पार्टी के सदस्यों की मीटिंग होती है। इसके बाद कॉकस उम्मीदवार का चयन होता है, जो डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों ही पार्टियों में होता है।
प्राइमरी– प्राइमरी चुनाव के दौरान रजिस्टर्ड वोटर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट करते हैं। उम्मीदवार के लिए वोटिंग चुनाव से 6 से 9 महीने पहले होती है। प्राइमरी चुनाव ज्यादातर राज्यों में होते हैं।
प्राइमरी और कॉकस के बाद डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियां अपने नेशनल कन्वेंशन आयोजित करती हैं। इसमें भाषण, रैलियां और राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रत्येक पार्टी के उम्मीदवार की आधिकारिक घोषणा की जाती है। नेशनल कन्वेंशन में ही राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार अपने उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन करता है। इसके बाद चुनावी जंग का बिगुल बजता है।
उम्मीदवारों के नामों की घोषणा के बाद आम चुनाव अभियान जोरों पर होता है। इस चरण में पूरे देश में उम्मीदवार रैलियों, बहसों, विज्ञापनों और सोशल मीडिया के जरिए अपने मुद्दों को अमेरिकी लोगों के सामने रखते हैं।
सितंबर से अक्टूबर के बीच होने वाली राष्ट्रपति पद की बहस अभियान का अहम पल होता है। इस साल ट्रंप और कमला ने 10 सितंबर को एबीसी न्यूज पर राष्ट्रपति पद के लिए बहस की।
अमेरिका में हर साल नवंबर के पहले मंगलवार को चुनाव होते हैं। इस दिन देश भर के मतदाता राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के लिए वोट डालते हैं। इस साल 5 नवंबर को मतदान होना है। हालांकि, दूसरे लोकतांत्रिक देशों से अलग, अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव सीधे लोकप्रिय वोट से नहीं होता। इसमें इलेक्टोरल कॉलेज निर्णायक भूमिका निभाता है।
जब लोग अपना वोट डालते हैं, तो वे वास्तव में इलेक्टर्स नामक एक टीम के लिए वोट करते हैं। राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार के पास इलेक्टर्स का अपना समूह होता है (जिसे स्लेट के रूप में जाना जाता है)।
अमेरिकी इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया के सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। इसमें प्रत्येक राज्य को कांग्रेस में उसके प्रतिनिधित्व के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टर्स आवंटित किए जाते हैं। इसमें सीनेटरों की संख्या, हमेशा दो, और जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधियों की संख्या शामिल होती है।
कुल 538 इलेक्टर हैं और ये इलेक्टर चुनाव के बाद राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। जिस उम्मीदवार को 270 इलेक्टोरल वोट मिलते हैं, उसे विजेता माना जाता है। चुनाव के बाद, इलेक्टर दिसंबर में अपने-अपने राज्यों में इलेक्टोरल वोट डालने के लिए मिलते हैं। फिर ये वोट कांग्रेस को भेजे जाते हैं, जहाँ जनवरी की शुरुआत में इनकी गिनती की जाती है। जिस उम्मीदवार को इलेक्टोरल वोटों का बहुमत मिलता है, उसे आधिकारिक तौर पर 20 जनवरी को संयुक्त राज्य अमेरिका का अगला राष्ट्रपति घोषित किया जाता है।
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