नई दिल्ली। यूक्रेन पर रूस के हमले ने पूरे यूरोप के समीकरण बदल कर रख दिए हैं। नाटो के मुद्दे पर यूक्रेन को निशाना बनाने के बाद यूरोपीय देश अपनी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित नजर आ रहे हैं।।यही कारण है कि रूस के विरोध और चेतावनियों की अनदेखी करते हुए फिनलैंड और स्वीडन ने […]
नई दिल्ली। यूक्रेन पर रूस के हमले ने पूरे यूरोप के समीकरण बदल कर रख दिए हैं। नाटो के मुद्दे पर यूक्रेन को निशाना बनाने के बाद यूरोपीय देश अपनी सुरक्षा को लेकर काफी चिंतित नजर आ रहे हैं।।यही कारण है कि रूस के विरोध और चेतावनियों की अनदेखी करते हुए फिनलैंड और स्वीडन ने सदस्यता लेने में दिलचस्पी दिखाई है। इसके लिए स्वीडन ने अपनी संसद से औपचारिक मंजूरी लेने के बाद ही विदेश मंत्री की ओर से इस आवेदन पर हस्ताक्षर किए हैं।
हालांकि तुर्की इन दोनों देशों को नाटो की सदस्यता देने के खिलाफ है। तुर्की का कहना है कि आतंकी संगठनों के प्रति इन दोनों देशों का रवैया बेहद गोल है। इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। इन दोनों देशों को सदस्यता देने पर नाटो पहले ही कह चुका है कि इसमें करीब एक साल लग सकता है। इस संदर्भ में इसकी सदस्यता की प्रक्रिया को जानना बहुत जरूरी है।
पहला सदस्य देश इसके लिए नाटो में आवेदन करता है। यह आमतौर पर किसी देश की सरकार द्वारा एक पत्र के रूप में होता है। इसके बाद नाटो के सदस्य मिलकर उत्तरी अटलांटिक परिषद में इस आवेदन पर चर्चा करते हैं। यह एनएसी ही तय करती है कि इस आवेदन को आगे बढ़ाया जा सकता है या नहीं। इसके अलावा एनएसी ही सदस्यता देने के लिए चुने जाने का रास्ता तय करती है। यह भी तय किया जाता है कि सदस्यता के लिए आवेदन करने वाले देश को राजनीतिक, सैन्य या कानूनी स्तर पर सदस्यता के लिए विचार किया जाना चाहिए या नहीं। यह भी देखा जाता है कि एक सदस्य देश नाटो में क्या योगदान दे सकता है।
एनएसी द्वारा आवेदन पर हां का फैसला करने के बाद, सदस्य को अनुच्छेद 5 पर सहमति देने के लिए कहा जाता है। यह अनुच्छेद 5 कहता है कि सभी नाटो सदस्य देश एकजुट होंगे और युद्ध के संकट में मदद करेंगे। इसका खर्च भी नाटो के सदस्य देश वहन करेंगे। आपको बता दें कि नाटो का सालाना बजट करीब 2.5 अरब डॉलर है।
‘सदस्य बनने के बाद, आवेदन करने वाला देश इसके तहत योजना और अन्य कानूनी प्रक्रियाओं में भाग लेता है। नाटो के तहत होने वाली हर बैठक की जानकारी सभी सदस्य देशों के साथ साझा की जाती है। इसके बाद यदि किसी सदस्य देश को इस पर कोई शंका या कोई प्रश्न हो तो उस पर बैठक में विचार किया जाता है। इस बीच आवेदन करने वाले देश की ओर से विदेश मंत्री द्वारा एक पत्र भेजा जाता है, जिसमें कहा गया है कि जो सवाल उठाए गए हैं, उन्हें हल करने के लिए वह काम करेंगे।
इसके बाद इस पत्र के आधार पर सदस्य देश फिर से एनएसी की बैठक में इस पर चर्चा करते हैं और अपना निर्णय लेते हैं। इसमें यदि सदस्यता लेने का निश्चय किया जाता है तो एक आयोजन में सांकेतिक और कानूनी रूप दिया जाता है। इसमें शामिल कुछ बिंदुओं के लिए इसके सदस्य देशों की संसद के अनुमोदन की आवश्यकता होती है। एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद, आवेदक के शुल्क का भुगतान वाशिंगटन में किया जाता है। इसके बाद ही आवेदन करने वाले देश को नाटो की सदस्यता मिलती है। अंत में, इसका झंडा औपचारिक रूप से नाटो मुख्यालय के बाहर फहराया जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया में कुछ अड़चनें हैं। इसमें सबसे बड़ी बाधा यह है कि किसी भी देश को सदस्य बनाने में सभी की सहमति जरूरी होती है। इस संगठन के सभी सदस्यों के पास वीटो पावर है और कोई भी निर्णय एकतरफा नहीं लिया जा सकता है। आपको बता दें कि नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स में स्थित है।
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