Explained: क्या है ड्रैगन की 'वन चाइना पॉलिसी' और ताइवान-बीजिंग के बीच कैसा है संबंध? समझिए

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नई दिल्ली। अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी चीन की चेतावनी के बाद भी मंगलवार को ताइवान के दौरे पर पहुंचीं। पेलोसी के इस दौरे के बाद चीन और अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है। चीन ने इसे उकसाने वाली कार्रवाई बताया है। चीन का कहना है कि अमेरिका को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

चीन-ताइवान के बीच विवाद क्या है?

ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से करीब 100 मील दूर स्थित एक द्वीप है। ताइवान खुद को एक संप्रभु राष्ट्र मानता है। उसका अपना संविधान और लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार भी है। वहीं चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान को अपने देश का महत्वपूर्ण हिस्सा बताती है। चीन इस द्वीप को एक बार फिर से अपने नियंत्रण में लेना चाहता है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ताइवान और चीन के पुन: एकीकरण की जोरदार वकालत करते आए हैं।

क्या है चीन की वन चाइना पॉलिसी?

वन चाइना पॉलिसी का मतलब ताइवान कोई अलग देश नहीं बल्कि वो चीन का ही हिस्सा है। 1949 में बना पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) ताइवान को अपना ही प्रांत मानता है। इस पॉलिसी के तहत मेनलैंड चीन और हांगकांग-मकाऊ जैसे दो विशेष रूप से प्रशासित क्षेत्र भी आते हैं।

बता दें कि ताइवान खुद को आधिकारिक तौर पर रिपब्लिक ऑफ चाइना (आरओसी) कहता है। जबकि चीन की वन चाइना पॉलिसी के मुताबिक चीन से कूटनीतिक रिश्ता रखने वाले देशों को ताइवान से संबंध तोड़ने पड़ते है। वर्तमान में चीन के 170 से भी ज्यादा कूटनीतिक साझेदार है, वहीं ताइवान के केवल 22 साझेदार है। यानी, दुनिया के ज्यादातर देश और संयुक्त राष्ट्र भी ताइवान को स्वतंत्र देश नहीं मानते हैं। 22 देशों को छोड़कर बाकी देश ताइवान को अलग नहीं मानते हैं। ओलंपिक जैसे वैश्विक आयोजनों में ताइवान चीन के नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकता, लिहाजा वह लंबे समय से चाइनीज ताइपे के नाम से खेल में उतरता है।

ताइवान-बीजिंग के बीच कैसा है संबंध?

गौरतलब है कि बीजिंग ने वन चाइना पॉलिसी से बहुत फायदा उठाया है। इस पॉलिसी की वजह से चीन ने ताइवान को कूटनीतिक दायरे से बाहर निकाल रखा है। ताइवान के साथ चीन की सांस्कृतिक और भाषाई समानता है। इस वजह से भी चीन उसे अपना हिस्सा बताता है। ताइवान के साथ बीजिंग के संबंध हमेशा से ही तनावपूर्ण हैं। इस द्वीपीय देश के साथ बीजिंग के संबंध के बारे में ज्यादा जानकारी तो सामने नहीं आती है। लेकिन ये जरूर देखा जाता है कि कभी-कभी चीन ताइवान के साथ नरम रुख भी दिखाता है। वहीं, ताइवान की जनता खुद को चीनी नागरिक नहीं मानती है। वो खुद को ताइवानी ही मानती है। चीन के विरोध के कारण ताइवान आज तक संयुक्त राष्ट्र का सदस्य नहीं बन सका है।

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