नई दिल्ली : New Delhi देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री Lal Bahadur Shastri जी की पुण्यतिथि आज है. आजादी की लड़ाई और देश के उत्थान में उनके अतुलनीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. शास्त्री जी सादगी, ईमानदारी, त्याग, समर्पण और उच्चतम मानवीय मूल्यों के भावनात्मक रूप में जिंदा रहने वाले महापुरूष थे. […]
देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री Lal Bahadur Shastri जी की पुण्यतिथि आज है. आजादी की लड़ाई और देश के उत्थान में उनके अतुलनीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. शास्त्री जी सादगी, ईमानदारी, त्याग, समर्पण और उच्चतम मानवीय मूल्यों के भावनात्मक रूप में जिंदा रहने वाले महापुरूष थे. शास्त्री जी के संघर्षपूर्ण कर्तव्यों में असहयोग आन्दोलन 1921, दांडी मार्च 1930, और सन् 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन स्वर्णाक्षरों में दर्ज है. इसके अलावा जय जवान, जय किसान का नारा भी शास्त्री जी ने देश को दिया. जिसके बलबूते पर आज भी देश के किसान मजदूर अपनी आवाज बुलंद करते हैं.
आजादी के बाद वे सन् 1951 में नई दिल्ली आ गए और केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का पदभार संभाला. वह परिवहन एवं संचार मंत्री, रेल मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री भी रहे. शास्त्री Lal Bahadur Shastri जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 को हुआ. इनके पिता का नाम शारदा प्रसाद और माता का नाम राम दुलारी देवी था.
इनकी मौत 11 जनवरी सन् 1966 को एक रहस्यमय परिस्थिति में उज्बेकिस्तान के ताशकंद के एक होटल में पाकिस्तान के साथ एक समझौते के दौरान हुई. शास्त्री जी पहले ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्हें मरणोपरांत देश के सबसे बड़े पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया. तो आइये अब जान लेते हैं कि आखिर क्यों? अब तक इनकी मौत एक रहस्यमय गुत्थी बनी हुई है.
पाकिस्तान के आक्रमण का सामना करते हुए भारतीय सेना ने लाहौर को अपने आगोश में समा लिया था. भारत के इस अभूतपूर्व आक्रमण को देखकर अमेरिका ने लाहौर में रह रहे अमेरिकी नागरिकों को निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की मांग की. रूस और अमेरिका की काफी मशक्कत के बाद भारत के प्रधानमंत्री को रूस के ताशकंद समझौते में बुलाया गया.
शास्त्री Lal Bahadur Shastri जी ने ताशकंद समझौते की हर शर्तों को मंजूर किया लेकिन पाकिस्तान के जीते हुए इलाकों को लौटाना किसी भी सूरत में कबूल नहीं किया. लेकिन अंतर्राष्ट्रीय दबावों के कारण शास्त्री जी को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा. बावजूद इसके शास्त्री जी ने खुद के प्रधानमंत्री रहने तक पाकिस्तानी जमीन को वापस करने से मना कर दिया था. ऐसा बताया जाता है,कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही भारत देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का संदिग्ध स्थिति में निधन हो गया।
हार्ट अटैक को उनकी मौत का कारण बताया गया. शास्त्रीजी की मौत को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जाते रहे हैं. उनके परिवार के लोगों समेत बहुत से लोगों का मानना है कि शास्त्रीजी की मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं बल्कि जहर देने से ही हुई. उनकी मौत की पहली इन्क्वायरी राज नारायण ने करवायी थी, जो बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गयी. उनकी मौत के बारे में इण्डियन पार्लियामेण्ट्री की लाइब्रेरी में भी कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं है. जो, कि बहुत हास्यास्पद बात है. उनकी मौत को लेकर यह भी आरोप लगे कि शास्त्रीजी का पोस्ट मार्टम नहीं हुआ. फिलहाल शास्त्रीजी की अन्त्येष्टि पूरे राजकीय सम्मान के साथ शान्तिवन में (नेहरू जी की समाधि) के आगे यमुना किनारे की गयी और उस जगह को विजय घाट नाम नवाजा गया.
इनकी मौत के बारे में सबसे पहले सन् 1978 में प्रकाशित एक हिन्दी पुस्तक ललिता के आँसू में शास्त्रीजी की मौत की दुखद कथा को स्वाभाविक ढँग से उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री के माध्यम से कहलवाया गया. यही नहीं एक अन्य अंग्रेजी पुस्तक में लेखक पत्रकार कुलदीप नैयर, जो उस समय ताशकन्द में शास्त्रीजी के साथ गये थे, इस घटना के बारे में विस्तार से प्रकाश डाला था.
साल 2009 में जब यह सवाल उठाया गया तो भारत सरकार की ओर से जबाव दिया गया कि शास्त्रीजी के प्राइवेट डॉक्टर आर०एन०चुग और कुछ रूस के कुछ डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत की जाँच तो की थी परन्तु सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है. बाद में जब प्रधानमन्त्री कार्यालय से जब इसकी जानकारी माँगी गयी तो उसने भी अपनी मजबूरी बता कर हाथ खींच लिए.
आउटलुक नाम की एक पत्रिका ने शास्त्रीजी की मौत में संभावित साजिश की पोल खोली. साल 2009 में, जब साउथ एशिया पर सीआईए की नज़र (CIA’s Eye on South Asia) नामक पुस्तक के लेखक अनुज धर ने सूचना के अधिकार के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय से जानकारी मांगी. तो प्रधानमन्त्री कार्यालय की ओर से कहा गया कि “शास्त्रीजी की मृत्यु के दस्तावेज़ सार्वजनिक करने से हमारे देश के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध खराब हो सकते हैं तथा इस रहस्य पर से पर्दा उठते ही देश में उथल-पुथल और संसदीय विशेषधिकारों को ठेस भी पहुँच सकती है। इन तमाम कारणों की वजह से इस सवाल का जबाव नहीं दिया जा सकता. जुलाई 2012 में शास्त्रीजी के तीसरे बेटे सुनील शास्त्री ने भी भारत सरकार से इस रहस्य पर से पर्दा हटाने की माँग की थी.
शास्त्री जी की मौत के बारे में मित्रोखोन आर्काइव नामक पुस्तक में भारत से संबन्धित अध्याय पढ़ने पर ताशकंद समझौते के बारे में उस समय की राजनीतिक गतिविधियों के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है।
साल 1966 में भारत-पाकिस्तान समझौते पर हस्ताक्षर कर शास्त्री बहुत दबाव में थे. पाकिस्तानी भू-भाग हाजीपीर औऱ ठिथवाल वापस कर देने के बाद देश में उनकी कड़ी आलोचना हो रही थी. इसके बारे में जाने माने पत्रकार कुलदीप नैय्यर ने बताया था. उन्होने देर रात दिल्ली अपने घर फोन किया. उनकी बड़ी बेटी ने जैसे फोन उठाया. तो उन्होने कहा कि अम्मा से बात कराओ, तो बेटी ने कहा कि अम्मा बात नहीं करेंगी, जब उन्होने इसका कारण जाना तो पता चला कि उन्होने हाजीपीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया है. इस वजह से वो बहुत गुस्से में हैं. इसके बाद शास्त्री जी आवाक रह गए. बड़ी देर तक कमरे का चक्कर काटते रहे फिर अपने सचिव वैंकटरमन से भारत से आर रही प्रतिक्रियाएं जानी. बेंकटरमन ने उन्हें अटल बिहारी बाजपेयी और कृष्ण मेनन के द्वारा उनके इस कदम की कड़ी आलोचनाओं के बारे में बताया
आगे कुलदीप नैय्यर कहते हैं. उस वक्त भारत-पाकिस्तान समझौते के जश्न में होटल में पार्टी चल रही थी. मैं शराब नहीं पीता था. इसलिए अपने होटल के कमरे में आ गया. उस रात मैने एक सपना देखा कि शास्त्री जी का देहांत हो गया है. और चौंककर जब वो बाहर निकले तो एक रूसी औरत ने उनसे कहा योर प्राइम मिनिस्टर इज डाइंग।
उसके बाद मैने झटपट अपना कोट पहना और जब नीचे शास्त्री जी के डाचा में पहुंचा तो बरामदे में रूसी प्रधानमंत्री कोसिगिन को खड़े देखा. उन्होने मुझे इशारा किया कि शास्त्री जी नहीं रहे. जब मैं मौके पर पहुंचा तो देखा कि एक बड़े कमरे में एक बहुत बड़े पलंग पर एक छोटा सा आदमी सिमटा हुआ निर्जीव पड़ा था. रात के करीब ढ़ाई बजे जनरल अयूब आए और उन्होने अफसोस जताया. हियर लाइज अ पर्सन हू कुड हैव ब्रॉट इंडिया एंड पाकिस्तान टुगैदर ( यहां वो शख्स लेटा हुआ है जो भारत और पाकिस्तान को एक साथ ला सकता था.) भारत का यह दुर्भाग्य ही था. कि ताशकंद समझौते के बाद देश इस महान पुरूष के नेतृत्व से वंचित रह गया.