Russia Ukraine War: नई दिल्ली, रूस और यूक्रेन के युद्ध (Russia Ukraine War) का असर अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर भी दिखना शुरू हो गया है. रविवार को कच्चे तेल की कीमतें रिकार्ड स्तर को छूते हुए 139 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई. कच्चे तेल का ये 2008 के बाद सबसे उच्चतम दाम है. तेल […]
नई दिल्ली, रूस और यूक्रेन के युद्ध (Russia Ukraine War) का असर अब अंतर्राष्ट्रीय बाजार पर भी दिखना शुरू हो गया है. रविवार को कच्चे तेल की कीमतें रिकार्ड स्तर को छूते हुए 139 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई. कच्चे तेल का ये 2008 के बाद सबसे उच्चतम दाम है. तेल व्यापारी इस बढ़ती कीमतों पर अपनी नजर बनाए हुए है.
बता दे कि कच्चे तेल की ये कीमते पिछले 14 सालों में सबसे ज्यादा है. इससे पहले 2008 में अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की सप्लाई में ईरान द्वारा देरी होने के कारण तेल की कीमते रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई थी, उस समय यूरोपीय बेंचमार्क ने एक बैरल कच्चे तेल की कीमत 147 डॉलर तक पहुंच गई थी।
कच्चे तेल की कीमतों में रविवार के अचानक बड़ी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई. माना जा रहा है है कि इसकी वजह अमेरिका और यूरोपीय यूनियन द्वारा रूसी कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंध लगाने का विचार है. तेल की बढ़ी इन कीमतों की वजह अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बड़ी हलचल मची हुई है और विशेषज्ञ ये भविष्यवाणी कर रहे है कि अभी कच्चे तेल को दामों में रिकार्ड बढ़ोत्तरी होगी. बताया जा रहा है कि साल 2022 के आखिर तक ये कीमते 185 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है।
कच्चे तेल की कीमतों में और बढ़ोत्तरी की भविष्यवाणी को इस लिए भी सच माना जा रहा है क्योंकि यूक्रेन पर हमला करने वाला रूस दुनिया का सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक देश है. यूरोप के सभी देश कच्चे तेल को लेकर रूस पर ही सबसे ज्यादा निर्भर है. रूस यूरोप के लगभग 40% कच्चे तेल की खपत को पूरा करता है।
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में अगर और ज्यादा बढ़ोत्तरी होती है तो इसका सीधा असर भारत के बाजारों पर भी पड़ेगा. रूस से भारत भी कच्चे तेल को खरीदता है. गौरतलब है कि दुनिया भर में जो भी कच्चा तेल की सप्लाई की जाती है उसमें से रूस को एक डॉलर प्राप्त होता है. यूक्रेन पर हमला करने की वजह से फिलहाल रूस को 60 प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल का कोई खरीददार नहीं है।