नई दिल्ली: सभी धर्मों में अलग-अलग अंतिम संस्कार का रिवाज है. हिंदू धर्म के रिवाज में इंसान के मरने के बाद दाह संस्कार किया जाता है और जहां दाह संस्कार होता है उसे शमशान के नाम से जाना जाता है. वहीं मुस्लिम और ईसाई धर्म के रिवाज में जहां पर लाशों को दफनाया जाता है उसे कब्रिस्तान कहा जाता है. कब्रिस्तान लगभग हर शहर में मौजूद है. इराक के एक शहर में एक ऐसे कब्रिस्तान के बारे में बताया जा रहा है जहां पर करोड़ों की संख्या में लाशें दफन है. इस कब्रिस्तान का इतिहास 200 या 300 नहीं बल्कि 1400 साल पुराना है।
आपको बता दें कि दुनिया के सबसे बड़ा कब्रिस्तान का नाम “वादी अल सलाम” है जो इराक के नफज शहर में मौजूद है. यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि यह कब्रिस्तान शहर का करीब 20 फ़ीसदी हिस्सा कवर कर रखा है. इतिहासकार बताते हैं कि यह कब्रिस्तान इराक के नफज शहर में 8वीं सदी में तैयार किया गया था यानी यहां के कब्रिस्तान में लोग 1400 सालों से लाशों को दफना रहे हैं. कहा जा रहा है कि इराक के नफज शहर की स्थापना अली इब्न अबी तालिब की दरगाह के नाम पर की गई थी. कहा जाता है कि “वादी अल सलाम कब्रिस्तान” में हर रोज लगभग 100 से अधिक मुर्दों को दफनाया जाता है।
दुनिया का सबसे बड़ा “वादी अल सलाम” कब्रिस्तान नफज शहर में करीब 1500 एकड़ में विकसित है. मुस्लिम धर्म के लोग इस जगह को बेहद पवित्र मानते हैं. विश्व में इस कब्रिस्तान को “वैली ऑफ पीस” के नाम से भी विख्यात है. कई मीडिया रिपोर्ट की मानें तो नफज शहर में स्थित “वैली ऑफ पीस कब्रिस्तान” में करोड़ों की संख्या में लाशें दफन की गई हैं।
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