नई दिल्ली। महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा और अपराध एक सभ्य समाज के लिए किसी बदनामी से कम नहीं है। इससे लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और समाज कलंकित होता है। इसी कलंक को हटाने के लिए हर साल 25 नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ मनाया जाता है। इस अभियान के माध्यम […]
नई दिल्ली। महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा और अपराध एक सभ्य समाज के लिए किसी बदनामी से कम नहीं है। इससे लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और समाज कलंकित होता है। इसी कलंक को हटाने के लिए हर साल 25 नवंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस’ मनाया जाता है। इस अभियान के माध्यम से महिलाओं के साथ बढ़ती हिंसा और अपराधों के प्रति लोगों को संवेदनशील एवं जागरूक बनाना है। यदि हम अपने देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते हुए अपराधों को देखें तो इस वक़्त यहां पर इन अभियानों की बहुत जरुरत है।
एनसीआरबी यानि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 के मुकाबले 2021 में देश में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इन आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित शहर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है। यहां महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले बाकि शहरों के मुकाबले 32.20 प्रतिशत ज्यादा है। एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक भारत में प्रत्येक तीन में से एक महिला के साथ घरेलू हिंसा होती है और लगभग 21 फीसदी महिलाओं के साथ काफी गंभीर समस्याएं होती है।
महिलाओं के ऊपर हो रही हिंसा और दुर्व्यवहार की उनको भारी कीमत अदा करनी पड़ती है, जो जीवन के सभी क्षेत्रों में उनकी भागीदारी के अधिकार को प्रभावित करती है। भारत में साल 2005 में महिलाओं को घरेलू हिंसा से संरक्षण प्रदान करने वाला कानून बनाया गया था, फिर भी अपराधों की संख्या में कोई बदलाव नहीं आया बल्कि अपराधों की संख्या में बढ़ोतरी हो गई। साल 2021 की क्राइम रिपोर्ट के मुताबिक़ घरेलू हिंसा के 92.5 प्रतिशत मामलों में अदालतों के समक्ष आरोप तय किए गए थे, जिनमें से सिर्फ 30.4 प्रतिशत लोगों को ही सजा मिली है। इस छूट से अपराधियों को हौसला मिलता है और ऐसे मामले बढ़ते जाते है। इस स्थिति में सुधार लाने की काफी आवश्यकता है।
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