नई दिल्ली. रूस और यूक्रेन की जंग बीते आठ महीने से जारी है, ये जंग थमने का नाम नहीं ले रही है. और अब तो इस जंग ने आक्रमक रुख अपना लिया है. दरअसल, बीते दिनों रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव पर ताबड़तोड़ 75 मिसाइलें दाग दी थी, जिसके बाद दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों के संगठन G-7 ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सख्त से सख्त शब्दों में चेतावनी देते हुए कह दिया कि अगर रूस परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करता है तो इसका उसे बहुत ही बुरा अंजाम भुगतना पड़ेगा.
वहीं, जी-7 देशों की इस चेतावनी से इतर पुतिन की सेना लगातार यूक्रेन पर बम और मिसाइलें बरसा रही हैं, दरअसल जब से रूस की शान कहे जाने वाले क्रीमिया ब्रिज पर हमला हुआ है तब से ही पुतिन का ये बदला-बदला अंदाज़ देखने को मिल रहा है. इस हमले के बाद सोमवार को पुतिन ने अपनी सेनाओं को यूक्रेन पर मिसाइलों से हमले करने का आदेश दिया, जिसके बाद से यूक्रेन में रूसी सेना का कहर बरस रहा है. इसे अब तक का सबसे बड़ा हमला कहा जा रहा है.
क्रीमिया ब्रिज पर हमले से पुतिन प्रशासन बौखलाया हुआ है, दरअसल, इस ब्रिज को पुतिन रूस की शान समझते थे. लेकिन एक भीषण ब्लास्ट में 3 खरब रुपये की लागत से बीच समंदर में बना ये ब्रिज पूरी तरह तबाह हो गया, इस घटना से रूसी सैनिकों के मनोबल को तगड़ी चोट लगी है. अब दुनिया इस खौफ में है कि इस हमले का बदला लेने के लिए पुतिन कहीं अपने टैक्टिकल परमाणु हथियारों का इस्तेमाल न कर दें, और जिस तरह से इस समय पुतिन के तेवर हैं उसे देखकर तो यही लग रहा है कि पुतिन गुस्से में परमाणु बम का इस्तेमाल कर सकते हैं.
रूस और यूक्रेन के जो मौजूदा हालात हैं उससे दूसरे विश्व युद्ध की याद आती है. जब 7 दिसंबर 1941 में जापान ने अमेरिका के नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया था, इस क्रूर हमले में जापान ने अमेरिका को घुटनों पर ला दिया था, 90 मिनट की इस बमबारी में ढाई हजार से ज्यादा अमरीकी सैनिकों की मौत हो गई थी. पर्ल हार्बर हवाई द्वीप में मौजूद अमेरिका का नौसैनिक सैन्य अड्डा है, इस युद्ध में जापान ने अमेरिका के कई युद्धपोत, पनडूब्बी को समंदर में डूबो दिया, 500 से ज्यादा हवाई जहाज नष्ट कर डाले. अमेरिका को अरबों में नुकसान हुआ था. छोटे से जापान ने पर्ल हार्बर में अपनी नौसैनिक और हवाई ताकत का ऐसा परिचय दिया कि दुनिया की ताकतें हैरान रह गई, दुनिया की महाशक्ति कहे जाने वाले अमेरिका पर ये जापान का डायरेक्ट हमला था.
जान-माल के नुकसान के अलावा इस हमले का रणनीतिक महत्व ये है कि इस हमले से पहले अमेरिका दूसरे विश्व युद्ध में तटस्थ था, लेकिन इस हमले के अगले ही दिन यानी कि 8 दिसंबर 1941 को अमेरिका इस विश्वयुद्ध में औपचारिक रूप से शामिल हो गया, इस हमले का अमेरिका पर बहुत गहरा असर पड़ा था.
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