नई दिल्ली. Afghanistan: पिछले छह महीने से अपने जीवन में भारी उथल-पुथल का सामना कर रहे अफगानिस्तान के लोगो की मुश्किले कम होने का नाम नही ले रही है. भयंकर सूखे से खराब हुई फसल और चौपट हुई अर्थव्यवस्था ने देश में गंभीर मानवीय संकट पैदा कर दिया है. लोगो को दो वक्त के खाने के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. बंदूक की दम पर देश में कब्जा करने वाले तालीबान के नेताओ के पास इस भुखमरी से निकलने का कोई रास्ता नही नजर आ रहा है. दुनिया से पूरी अलग-थलग पड़ चुके इस देश का सरकारी खजाना इस वक्त बिल्कुल खाली हो गया है. तालिबानी शासन के पास सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने तक के भी पैसे नही है.
अफगानिस्तान की अधिकांश आबादी की जीविका खेती पर ही निर्भर है. देश में पांच लाख से ज्यादा लोग अफीम की खेती से जुड़े हुए है. अफीम से होने वाली कमाई का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महाशक्ति अमेरिका के द्वारा हमले के बाद अफीम ने ही तालिबान को जंग लड़ने में मदद की थी. यूएन की एक रिपोर्ट की माने तो अफगानिस्तान की जीडीपी का 11% अफीम से होने वाली कमाई का है. लेकिन बदली हुई परिस्थियों ने काली कमाई के स जरिये पर ग्रहण लगाया हुआ है.
बीस सालो तक अफगानिस्तान में अमेरिका और उसके मित्र देश ब्रिटेन, फ्रांस की सेनाओं से जंग लड़ने वाला तालिबान आज इन्ही पश्चिमी शक्तियों को ओर मदद की आशा में देख रहा है. अमेरिका सेना के देश से जाने के बाद करोड़ो डॉलर की मिलने वाली अमेरकी मदद भी अब पूरी तरह बंद हो गई है. संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतराष्ट्रीय संगठन भी फिलहाल अपना दरवाजा अफगानिस्तान के लिए बंद किए हुए है।
दुनिया भर के तमाम देशों द्वारा तालिबानी सत्ता से मान्यता ना देने के फैसले के बाद. चीन और पाकिस्तान ही दो ऐसे देश थे तालिबान को मान्यता और मदद की उम्मीद थी. दोनो देशो ने मान्यता देने का आश्वासन भी दिया था लेकिन 6 महीने से ज्यादा होने के बाद भी इन दोनो देशों ने तालीबानी शासन को मान्यता नही दी है. चीन जहां अपने महत्वकांक्षी Cpec Corridor पर हो रहे आतंकी हमलो के पीछे तालिबान की भूमिका होने से पीछे हट रहा है. वही पाकिस्तान की सरकार पर अमेरिका के दबाव को साफ देखा जा सकता है. इसी अमरीकी दबाव की वजह से तालीबान के सरकार गठन में मदद करने गए आईएसआई चीफ को पाकिस्तान को हटाना पड़ा था.
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