इसके तीन कारण बताये जा रहे हैं. अपने बयान में दूतावास ने कहा है कि मेजबान मुल्क से हमें मदद नहीं मिल रही है. जिसकी वजह से हम कारगर तरीके से काम नहीं कर पा रहे हैं.
दूसरा कारण यह है कि अफगानिस्तान में वैध सरकार न होने से दूतावास अफगानी नगारिकों की जरूरतों और हितों की रक्षा नहीं कर पा रहा है.
जबकि तीसरा कारण कर्मचारियों और संसाधनों की कमी को बताया गया है. वीजा रिन्यू करने से लेकर अन्य कामों के लिए वहां की सरकार से अपेक्षित सहायता नहीं मिल रही है.
दूतावास ने कहा है कि इमर्जेंसी कंसुलर सेवाएं जारी रहेंगी. विएन संधि के तहत दूतावास की संपत्ती मेजबान मुल्क यानी भारत को सौंप दी जाएगी. दूतावास ने यह भी स्पष्ट किया है कि दूतावास के कर्मचारियों में मतभेद या झगड़े की बात बेबुनियाद है और इस बाबत भारतीय विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिखी है कि दूतावास को बंद करने में मदद करे.
साथ में यह भी कहा है कि अफगानिस्तान के झंडे को दूतावास पर लहराने दिया जाए और उसे वैध सरकार को ही सौंपा जाए.
दूतावास ने यह भी साफ कर दिया है कि दोनों वाणिज्य दूतावासों ने जो काम काज जारी करने का फैसला किया है ये अफगानिस्तान में चुनी हुई वैध सरकार के उद्देश्यों के विपरीत है. 2021 में अशरफ गनी सरकार को हटाने के बाद तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था.
नतीजतन अधिकांश देशों ने अफगानी दूतावासों में तालिबान की नियुक्तियों को स्वीकारने से मना कर दिया था. इसके विपरीत रूस, चीन, पाकिस्तान और ईरान जैसे देशों ने तालिबान द्वारा नियुक्त लोगों को स्वीकार कर लिया लेकिन भारत उन देशों में शामिल है जिसने तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी.
उसने 2020 में ग़नी सरकार द्वार नियुक्त किए राजदूत फ़रीद मामुन्दज़ई को ही मान्यता दी. वो पिछले क़रीब तीन साल से भारत में काम कर रहे हैं, बेशक काफी समय से वह बाहर रह रहे है.
हकीकत यह है कि अफगानिस्तान में अभी कोई वैध सरकार नहीं है, तालिबान बंदूक के दम पर वहां की सत्ता पर कब्जा किये हुए है. इस वजह से दूतावास को काम करने में दिक्कत हो रही थी.
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