नई दिल्ली. केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया के लड़ाकों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करता है. ISIS इन लोगों को अच्छे लड़ाके नहीं मानता है. भारत की ओर से अब तक 23 लोग ISIS के लिए लड़ने जा चुके हैं, इनमें छह की मौत हो चुकी है.
भारत का इस्लाम जिहाद के लिए ठीक नहीं
रिपोर्ट के मुताबिक, सीरिया और इराक के बड़े हिस्से पर काबिज ISIS की राय है कि भारत का इस्लाम जेहाद की प्रेरणा नहीं देता. दरअसल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो इस्लाम पढ़ाया जाता है, ISIS उसे कुरान ओर हदीस की मूल शिक्षा से अलग बताता है. इसलिए वहां के मुसलमान सलाफी जिहाद की तरफ नहीं जाते हैं.
न अच्छे हथियार मिलते हैं, न सैलेरी
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) की रिपोर्ट में लिखा है कि दक्षिण एशिया से आने वाले रंगरूटों के दिलों में जिन्न का डर बैठाया जाता है. उनसे कहा जाता है कि अगर वे अपने देश लौटेंगे तो उन्हें सारी उम्र जिन्न परेशान करेगा. दक्षिण एशिया के लड़ाकों को ISIS दोयम दर्जे का मानता है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया और सूडान के इलाकों के नौजवानों को असली लड़ाके नहीं मानता. उन्हें अरब के लड़ाकों से नीचे रखा जाता है. यही नहीं, न तो उन्हें बेहतर हथियार दिए जाते हैं और न ही अरब के लड़ाकों की तरह वेतन.
फिदायीन दस्ते की तरह होता है इस्तेमाल
रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण एशिया के रंगरूटों के साथ दूसरे दर्जे का सलूक होता है. इन्हें कम पैसे मिलते हैं और छोटी बैरकों में रहना पड़ता है. इन्हें फिदायीन दस्ते की तरह इस्तेमाल किया जाता है. कई बार इन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती कि उनका फिदायीन की तरह इस्तेमाल होगा. रिमोट कंट्रोल से उन्हें उड़ा दिया जाता है. उन्हें कहा जाता है कि सामान लेकर किसी से मिलने जाएं. जब वे अपनी गाड़ी लेकर वहां पहुंचते हैं तो उन्हें फोन के जरिये उड़ा दिया जाता है.
जेहादी बीवियां भी नहीं मिलतीं
गृह मंत्रालय तक पहुंची यह रिपोर्ट बताती है कि ज्यादातर लड़ाके हूरों के चक्कर में जिहाद से जुड़ते हैं. चूंकि ISIS में महिलाओं की संख्या कम है इसलिए एशिया के लड़कों को बीवियां नहीं मिलती. यहां तवज्जो अरब के लड़ाकों को दी जाती है इसलिए जेहादी बीवियां उन्हें ही मिलती है.
ISIS की पुलिस रखती है नजर
ISIS दक्षिण एशिया के लड़कों को फुट सोल्जर के तरह इस्तेमाल करती है. अरब के लड़के इनके पीछे रहते है. यही वजह है कि कि अरब मूल के लड़ाकों के मुकाबले दक्षिण एशियाई मूल के लड़के इस जंग में ज़्यादा मारे गए हैं. दक्षिण एशिया के लड़ाकों पर पूरा भरोसा भी नहीं किया जाता और आइएस की पुलिस इन पर नज़र रखती है. सिर्फ ट्यूनीशिया, सऊदी अरब, फलस्तीन, इराक और सीरिया के अरब ही आईएसआईएस पुलिस मे शामिल हो सकते है.