तेहरान. ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अकबर हाशमी रफसंजानी ने मान लिया है कि 80 के दशक में पाकिस्तान ने ईरान को परमाणु तकनीक दी थी. पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खान ने अपने देश में जांच के दौरान बताया था कि बेनज़ीर भुट्टो के कार्यकाल में ईरान ने तीन परमाणु बम के लिए 10 अरब डॉलर की पेशकश की थी.
पाकिस्तान अब तक यही कहता आया है कि ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक कादिर खान की अगुवाई में चल रहे गिरोह ने बेची थी. ईरान की वेबसाइट न्यूक्लियर होप को दिए इंटरव्यू में रफसंजानी ने कहा है कि कादिर खान का मानना था कि इस्लामिक देशों के पास परमाणु बम होना चाहिए इसलिए पाकिस्तान हमारी कुछ हद तक मदद करने को तैयार हुआ था.
कादिर खान ने पाकिस्तान में अपने खिलाफ चली जांच में 11 पेज का नोट देकर बताया था कि ईरान ने तीन परमाणु बम के लिए 10 अरब डॉलर की पेशकश की थी. खान के मुताबिक इस डील को ईरान की तरफ से अली समखानी हैंडल कर रहे थे जो 1990 में इस्लामाबाद आए थे. खान ने दावा किया था कि समखानी की पेशकश पर अधिकारियों ने तत्कालीन पीएम बेनज़ीर भुट्टो के साथ चर्चा भी की थी.
ईरान चाहता था कि दुश्मन के परमाणु हमले का जवाब उसके पास हो
रफसंजानी ने इंटरव्यू में कहा, “हम जंग लड़ रहे थे. हम चाहते थे कि हमारे पास भी ऐसा विकल्प हो अगर दुश्मन देश परमाणु हथियार का इस्तेमाल करना चाहे. हमारी मनोदशा यही थी.” उन्होंने कादिर खान से मिलने के लिए दो बार पाकिस्तान का दौरा किया लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खोमैनी भी इसी मकसद से एक समय पाकिस्तान गए थे पर उन्हें भी कामयाबी नहीं मिली.
परमाणु कार्यक्रमों की निगरानी करने वाली अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी आईएईए की जांच में पता चला था कि 1987 में ईरान के तीन अधिकारी कादिर खान नेटवर्क के लोगों से मिले थे और नेटवर्क ने ईरानियों को परमाणु तकनीक पर नोट्स, पार्ट्स, डायग्राम वगैरह मुहैया कराए थे. इस नेटवर्क ने ईरान को ये भी बताया था कि कैसे यूरेनियम से बम बनाया जा सकता है.
कादिर ने 1995 में एक भाषण में कहा था कि कुछ मुस्लिम देशों ने प्रतिबंधित तकनीक के क्षेत्र में जो चीजें हासिल कर ली हैं वो अंतरराट्रीय दबाब के कारण दूसरे मुस्लिम देशों तक नहीं पहुंच पा रही हैं.
खान ने ईरान के बुशेहर परमाणु प्लांट का 1986 में दौरा भी किया था. ईरान ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सामने माना है कि 1994 से 1999 के बीच उसके वैज्ञानिक परमाणु तकनीक देने वाले नेटवर्क के लोगों से 13 बार मिले.
जनरल जिया उल हक़ के जमाने में हुई थी ईरान-पाक परमाणु डील !
कादिर खान ने पांच साल की नज़रबंदी काटने के बाद 2009 में एक इंटरव्यू में कहा था कि ईरान एक महत्वपूर्ण इस्लामिक देश है इसलिए हमने चाहा कि वो परमाणु तकनीक हासिल कर ले. उन्होंने कहा था कि ईरान के परमाणु शक्तिसंपन्न होने पर उसकी ताकत इजरायल के बराबर हो जाती.
रफसंजानी ने जो टाइमलाइन बताए हैं उससे लगता है कि ईरान और पाकिस्तान का परमाणु डील सैन्य शासक जनरल जिया उल हक के जमाने में हुआ. माना जाता है कि जनरल जिया उल हक के बाद पाकिस्तानी सेना की कमान संभालने वाले जनरल मिर्ज़ा असलम बेग ने बेनज़ीर भुट्टो पर दबाव डाला कि वो ईरान के साथ परमाणु डील पर आगे बढ़ें.