नई दिल्ली. पाकिस्तान के रावलपिंडी में हिंदूओं की तादाद भले ही कम हो गई हो लेकिन यहां मौजूद हिंदू मंदिरों की चमक कम नहीं हुई है.
डॉन की एक रिपोर्ट के मुताबिक कभी हिंदू और सिख लोगों से भरे-पूरे रावलपिंडी में अब सिखों का पलायन हो चुका है लेकिन हिंदू लोग यहां मौजूद मंदिरों की देख-रेख कर रहे हैं और वे यहां लगातार पूजा करने जाते हैं.
1897 में स्थापित हुआ था कृष्णा मंदिर
रावलपिंडी रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित कृष्णा मंदिर 1897 में बना था. इसे कानजी मल, उजगर मल और राम राजपल ने स्थापित किया था. इस मंदिर में शिवलिंग है और कृष्ण, गणेश और मां दुर्गा भी हैं.
मंदिर के सेवक जगमोहन अरोड़ा ने बताया कि मंदिर के सबसे ऊपर तल्ले में बड़ी खिड़की से रोशनी आती है. यहां हिंदू गुरुओं के फोटो लगे हैं जिनमें साईं बाबा की फोटो भी है.
रावलपिंडी के सामाजिक ताने-बाने के बारे में मंदिर की देख-रेख करने वाले मनोहर लाल कहते हैं कि हिंदू और सिख अब भी एक-दूसरे से शादी करते हैं. चूंकि सिख पलायन कर चुके हैं इसलिए हिंदू इन मंदिरों की देख-रेख कर रहे हैं.
कृष्णा मंदिर के सामने है मस्जिद
यहां कृष्णा मंदिर के सामने ही एक मस्जिद है. अरोड़ा ने बताया कि यहां हिंदू-मुस्लिमों को किसी तरह की समस्या नहीं होती है. कई बार हम एक-दूसरे की सुविधानुसार काम करते हैं.
मनोहर लाल ने बताया, ‘एक बार मौलवी से जब उन्होंने खुद अजान करने की बात कही थी तब मौलवी ने उन्हें ऐसा करने से रोका नहीं था.’
गुरु बाल्मिक स्वामी जी मंदिर
रावलपिंडी के चकलाला कॉन्टेमेंन्ट में यह मंदिर 1935 में बना था. यहां कई हिंदू परिवार रहते हैं. ब्रिटिश काल से यहां मिलिट्री कैंप है. इस मंदिर में जून के महीने में जब भी भंडारा लगता है तो पाकिस्तान के रहने वाले कई हिंदू यहां आते हैं.
पिछले 15 साल से यहां हिंदुओं को किसी तरह की परेशानी नहीं हुई है. हालांकि रावलपिंडी में अब कई मंदिरों की स्थिति ठीक नहीं और ये ज्यादातर घर, स्कूल और यूनिवर्सिटी में तब्दील हो चुकी है.
रिपोर्ट्स के अनुसार यूनेस्को ने रावलपिंडी में मंदिरों के पुर्नउत्थान के लिए निर्देश दिए हैं. अगर निर्देश का पालन हुआ तो यहां ज्यादातर मंदिरें फिर जीवंत होंगी.