नई दिल्ली. गौमांस की अफवाह के बाद दादरी में मारे गए शख्स मोहम्म्द अखलाक की हत्या के बाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुप्पी पर दुनिया भर के अखबारों ने केंद्र सरकार की आलोचना की है. कई प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय अखबारों ने धर्म के नाम पर बढ़ते उग्रवादी हमलों पर चिंता जताई है.
द गार्जियन अखबार लिखता है कि प्रधानमंत्री के आलोचकों का कहना है कि जब से मोदी ने सत्ता ग्रहण की है, तब से दक्षिणपंथी समूह ताकतवर होते जा रहे हैं. अखबार ने धर्मांतरण, गौ-हत्या मामले पर बढ़ते हमलों, बौद्धिक लोगों पर बढ़ते हमलों का जिक्र किया है. उसमें ये भी कहा गया है कि शीर्ष नेताओं की चुप्पी आश्चर्यजनक है. भारत में अधिकतर राज्यों में गौवध कानून अवैध है लेकिन बीफ खाना कोई जुर्म नहीं है. बिसहरा और उसके आस-पास के गांवों में ठाकुर ज़मींदार हैं और अधिकतर मुसलमान खेतों पर काम करने वाले मजदूर हैं. इस बात पर स्थानीय लोगों ने कभी शिकायत नहीं की.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने एक लेख के जरिए भारत में हो रही इस तरह की घटनाओं पर चिंता जाहिर की है. अखबार ने लिखा है कि आज के दौर में सेक्युलर उदारवादियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उदारवादी लोग जिन्दा कैसे रहें? सोनिया फैलरो के लेख के मुताबिक़, इन सभी हत्याओं से पता चलता है कि कैसे भारत में सेक्युलर उदारवादियों की आवाज को दबाया जा रहा है? हमलों की ख़बरें अखबार के पहले पन्नों में छप रहीं हैं लेकिन सरकार अभी तक इन मामलों में चुप्पी साधे हुए है.
सीएनएन ने अपनी एक खबर में लिखा है कि सदियों से हिन्दू और मुसलमान साथ-साथ शांति से रहते चले आ रहे हैं. पिछले कुछ दिनों में उन्माद के कारण दादरी के बिसहाड़ा गांव की पूरी तस्वीर ही बदल गई.
वाशिंगटन पोस्ट लिखता है कि भीड़ ने एक व्यक्ति को घर से घसीट कर सिर्फ इसलिए मार डाला क्योंकि उसने बीफ खाया था. क्या अख़लाक का सिर्फ यही जुर्म था कि उसने बीफ खाया, जबकि यह सिर्फ एक अफवाह थी. पिछले कुछ सालों में नरेंद्र मोदी सरकार ने गे सेक्स को वापस अपराध की श्रेणी में डाल दिया। कई किताबें बैन कर दी गईं. कई ऐसे कानून बने जिनके कारण व्यक्तिगत स्वंतंत्रता लगातार प्रभावित हो रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावों के वक़्त कहा था कि वे धर्मनिरपेक्षता के प्रति प्रतिबद्ध हैं, लेकिन उनकी ही पार्टी के नेता बीफ बैन को लेकर खुलेआम बयानबाज़ी कर रहे हैं.
इसके अलावा कई प्रमुख अखबारों हफिंग्टन पोस्ट, रायटर्स, मेल ऑनलाइन यूके आदि ने सरकार की चुप्पी पर सवाल खड़े किए हैं.