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अमेरिका की दोहरी चाल, सुरक्षा परिषद में भारत की एंट्री पर सवाल

संयुक्त राष्ट्र. अमेरिका के साथ ही रूस और चीन ने उस मसौदे पर चर्चा में भाग लेने से मना कर दिया है, जिसके आधार पर सुरक्षा परिषद के विस्तार की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. इसे स्थायी सदस्यता के लिए भारत के दावे को बड़ा झटका माना जा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम कुटेसा सदस्य देशों के बीच एक मसौदा वितरित किया था, जिसके आधार पर सुरक्षा परिषद के विस्तार के लिए वार्ताओं का दौर शुरू होगा. कुटेसा ने इस सिलसिले में 31 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों को एक पत्र लिखा. इसमें उन्होंने कहा कि वे उन देशों का पत्र भी सार्वजनिक कर रहे हैं, जो नहीं चाहते कि वार्ता दस्तावेज में उनके प्रस्तावों को शामिल किया जाए. इन देशों में अमेरिका, रूस और चीन शामिल हैं.
संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत सामंता पावर ने कुटेसा को लिखे पत्र में कहा कि उनका देश सुरक्षा परिषद के विस्तार को लेकर सैद्धांतिक रूप से सहमत है लेकिन स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाते समय अंतरराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा कायम रखने को लेकर उस देश की योग्यता और इच्छा पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए. हमारा मानना है कि नए स्थायी सदस्य देशों पर विचार करते समय उस देश की विशिष्टता पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए.
सामंता ने कहा कि अमेरिका नए स्थायी सदस्यों को वीटो पावर देने या इसकी अदला-बदली के किसी प्रस्ताव का विरोध करता रहेगा. हालांकि फ्रांस व इंग्लैंड के अलावा कजाकिस्तान और रोमानिया ने भारत के दावे का समर्थन किया है. इन देशों ने वार्ता मसौदे में ब्राजील, जर्मनी, भारत, जापान और किसी अफ्रीकी देश को सुरक्षा परिषद में शामिल करने की बात कही है.
दोहरी चाल
संयुक्त राष्ट्र सुधार प्रक्रिया पर अमेरिकी विरोध ने उसके दोहरे चरित्र को उजागर कर दिया है. एक तरफ जहां राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत की स्थायी सदस्यता को समर्थन दे चुके हैं, वहीं दूसरी तरफ उनका देश इसके मसौदे पर भी विचार करने को तैयार नहीं है. चीन ने सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों की एकता पर जोर दिया है. उसने कहा है कि सुरक्षा परिषद में सुधार सदस्य देशों की एकता की कीमत पर नहीं होना चाहिए. हम ऐसे किसी मुहिम का समर्थन नहीं करेंगे, जिस पर सदस्य देशों में गंभीर मतभेद होगा. रूस ने वीटो पावर सहित वर्तमान स्थायी सदस्यों को मिले सारे विशेषाधिकार भविष्य में भी बनाए रखने पर जोर दिया है. उसका कहना है कि कोई भी सुधार शांत, पारदर्शी और समावेशी माहौल में किया जाना चाहिए. इसके लिए कोई कृत्रिम समय सीमा नहीं होनी चाहिए.
एजेंसी
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