लंदन: अंटार्कटिका में चौथे सबसे बड़े आइसबर्ग ‘लार्सेन सी’ का बड़ा हिस्सा टूटकर अलग हो गया है. इसका दुनिया के पर्यावरण पर बड़ा असर पड़ने की बात कही जा रही है. इस टूटे हुए हिमखंड का आकार 5800 वर्ग किमी है, जो दिल्ली के आकार से 4 गुना बड़ा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे वैश्विक समुद्री स्तर में 10 सेंटीमीटर की बढ़ोतरी होगी.
यह हिमखंड 10 और 12 जुलाई के बीच टूटकर अलग हुआ है. समुद्र का जलस्तर बढ़ने से इस महाद्वीप के पास से गुजरने वाले जहाजों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. वैज्ञानिकों ने इस हिमखंड के अलग होने के पीछे कार्बन उत्सर्जन को सबसे बड़ी वजह बताया है. उनके मुताबिक कार्बन उत्सर्जन से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है जिससे ग्लेशियर जल्दी पिघलते जा रहे हैं.
धरती का सबसे बड़ा बर्फिस्तान अब रेगिस्तान बनता जा रहा है. कहने का मतलब ये कि आर्कटिक और अंटार्कटिका में बर्फ का स्टॉक तेजी से खत्म हो रहा है. ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं और बर्फ का समंदर पानी बनता जा रहा है. वैज्ञानिकों का दावा है कि पिछले कई हजार सालों में जो नहीं हुआ वो अब हो सकता है. यानी धरती पर महातबाही आ सकती है. साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव, जिसे अंटार्ककिटा भी कहते हैं. लाखों मील में फैला ये पूरा इलाका यूं तो सालों भर बर्फ से ढका रहता था. लेकिन अब वहां हरियाली झाई हुई है.
जहां कभी इंच इंच जमीन पर सिर्फ बर्फ हुआ करती थी अब वहां पेड़ पौधे नजर आने लगे हैं. यानी एक किस्म की वनस्पति जो इस बर्फिस्तान में तेजी से फैलती जा रही है. वैज्ञानिकों की ताजा रिसर्च से पता चला है कि बर्फिस्तान के इलाके में अब तेजी से शैवाल पनपने लगे हैं. यानी बड़े बड़े ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं और उनकी जगह वहां पेड़-पौधे पैदा होने लगे हैं.