बीजींग: भारत के विरोध के बाद भी चीन में रविवार को ‘वन बेल्ट वन रोड’ समिट शुरू हुआ. समिट का उद्घाटन करते हुए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत का नाम लिए बगैर नसीहत देते हुए कहा कि सभी देशों को एक-दूसरे की भूभागीय एकता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए. शी ने प्राचीन रेशम मार्ग का संदर्भ दिया और ‘सिंधु और गंगा सभ्यताओं सहित’ विभिन्न सभ्यताओं के महत्व पर अपनी बात रखी.
भारत की आपत्तियों का संदर्भ दिए बिना शी ने कहा, ‘सभी देशों को एक दूसरे की संप्रभुता, मर्यादा और भूभागीय एकता का, एक दूसरे के विकास के रास्ते का, सामाजिक प्रणालियों का और एक दूसरे के प्रमुख हितों तथा बड़ी चिंताओं का सम्मान करना चाहिए.’ भारत ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से हो कर गुजरने वाले इस विवादित आर्थिक गलियारे को लेकर चिंताओं के चलते इस फोरम का बहिष्कार किया था.
शी ने आगे कहा कि बेल्ट एंड रोड पहले एशियाई, यूरोपीय और अफ्रीकी देशों पर केंद्रित है लेकिन इस फायदा हर देश ले सकता है. उन्होंने कहा कि चीन इस पहल में हिस्सा लेने वाले विकासशील देश और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को 60 अरब यूआन (8.7 अरब डॉलर) की साहयता मुहैया कारएगा. शी ने कहा कि समीट में हिस्सा लेने वाले देशों के साथ नवाचार पर सहयोग बढ़ाने के लिए 50 ज्वाइंट लाइब्रेरी की स्थापना करेगा.
बीजींग में दो दिन तर चलने वाले इस समीट में 29 देशों के राष्ट्रध्यक्ष, वर्ल्ड बैंक के प्रेसिडेंट जिम योंग किम, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरस, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टीन लगार्ड के अलावा 130 देशों के अधिकारी, बिजनेसमैन हिस्सा ले रहे हैं. इस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कुछ भारतीय विद्वानों ने भी हिस्सा लिया है.
शी ने कहा कि चीन की योजना ऐसी मार्ग बनाने की है जो शांति के लिए हो और एशिया, यूरोप तथा अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों से उनके देश को जोड़े. फोरम में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोगन सहित अन्य ने हिस्सा लिया. अमेरिका ने राष्ट्रपति के विशेष सहायक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में एशिया के लिए वरिष्ठ निदेशक मैट पॉटिंगर की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल भेजा है.
इस मामले में भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने कहा कि इस मामले में अपनी सैद्धांतिक स्थिति के तहत हम चीन से उसके इस पहल पर सार्थक बातचीत का आग्रह कर चुके हैं. हम चीन की तरफ से सकारात्मक उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं. कोई भी देश संप्रभुता और क्षेत्रीय एकता पर उसकी मुख्य चिंताओं को नजरअंदाज करने वाली परियोजना को स्वीकार नहीं करेगा.
चीन ने दुनिया के कई मुल्कों को OBOR में भागीदारी के लिए राजी कर लिया है. पूरी दुनिया को इस आर्थिक गलियारे का सब्जबाग दिखाते हुए चीन यह साबित करने की कोशिश कर रहा कि इससे सबका फायदा होगा, इसलिए एशिया से लेकर यूरोप तक सभी देश इसमें शामिल हों.
बता दें कि ओबीओआर लगभग 1,400 अरब डॉलर की परियोजना है. चीन को उम्मीद है कि उसका यह ड्रीम प्रोजेक्ट 2049 तक पूरा हो जाएगा. 2014 में आई रेनमिन यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि नई सिल्क रोड परियोजना करीब 35 वर्ष में यानी 2049 तक पूरी होंगी.