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जानिए क्या है ग्रीस संकट और भारत को इससे क्या हैं नुकसान

ग्रीस के यूरो जोन में बने रहने की कोशिशें लगातार नाकाम होती नजर आ रही हैं. यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने भी ग्रीस में आपात फंडिंग बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया है. इसके अलावा ग्रीस के सभी बैंक अगले 7 दिनों तक बंद रहेंगे और एटीएम से भी 60 यूरो से ज़्यादा निकालने पर रोक लगा दी गई है. हालांकि फिलहाल ऑनलाइन बैंकिंग पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है, लेकिन फॉरेन ट्रांसफर रोक दिया गया है.

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  • June 29, 2015 7:26 am Asia/KolkataIST, Updated 10 years ago

एथेंस. ग्रीस के यूरो जोन में बने रहने की कोशिशें लगातार नाकाम होती नजर आ रही हैं. यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने भी ग्रीस में आपात फंडिंग बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया है. इसके अलावा ग्रीस के सभी बैंक अगले 7 दिनों तक बंद रहेंगे और एटीएम से भी 60 यूरो से ज़्यादा निकालने पर रोक लगा दी गई है. हालांकि फिलहाल ऑनलाइन बैंकिंग पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है, लेकिन फॉरेन ट्रांसफर रोक दिया गया है. 

बता दें कि मंगलवार 30 जून तक 1.6 अरब यूरो यानी 1.7 अरब डॉलर चुकाने की डेडलाइन है. अगर ग्रीस भुगतान नहीं करता है तो उसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाएगा. ग्रीस में संकट गहराने से दुनियाभर के बाजारों में गिरावट देखने को मिल रही है, भारत में भी सप्ताह के पहले कारोबारी दिन बाजारों ने भारी गिरावट के साथ दिन की शुरुआत की. सेंसेक्स में 500 से भी ज्यादा अंकों की गिरावट दर्ज की गई, जबकि निफ्टी भी 150 अंक नीचे कारोबार करता नजर आया.

जापान का बाजार निक्केई करीब 2 प्रतिशत तक टूटा। उधर डॉलर के मुकाबले यूरो एक महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है. जानकारों का कहना है कि ग्रीस की तरफ से कैपिटल कंट्रोल एक सरप्राइज मूव है. डिफॉल्ट के लिए 20 जुलाई अहम दिन होगा. जानकारों के मुताबिक यूरो जोन से ग्रीस के निकलने का कोई बड़ा आर्थिक प्रभाव नहीं पड़ेगा और लंबी अवधि में इसका भारत पर भी कोई खास असर नहीं पड़ेगा. शॉर्ट टर्म में इसका कुछ असर पड़ने की आशंका जरूर है. जानकारों का कहना है कि अगर ग्रीस ने मंगलवार को आईएमएफ में पैसे नहीं जमा किए तो वह डिफॉल्ट नहीं करेगा, डिफॉल्ट के लिए 20 जुलाई अहम दिन होगा. आपको बता दें कि इसकी सम्भावना है कि जर्मनी नहीं चाहेगा कि ग्रीस यूरो जोन से बाहर चला जाए. 

जानें क्या है ग्रीस संकट
1. ग्रीस के डिफॉल्ट होने की नींव 1999 में यहां आए विनाशकारी भूकंप को भी कहा जा सकता है. इस भूकंप में देश का ज्यादातर हिस्सा तबाह हो गया था और लगभग 50,000 इमारतों का पुनर्निर्माण करना पड़ा था. यह सारा काम सरकारी धन खर्च करके किया गया.
2. यूरो जोन से जुड़ना भी ग्रीस की भारी भूल मानी जा रही है. हालांकि ग्रीस यूरो जोन से जुड़ने वाला पहला देश नहीं था, लेकिन उसने 2001 में ऐसा किया. यूरो जोन में आने से उसे कर्ज मिलने में आसानी होने वाली थी लेकिन उसका यह फैसला उसके लिए भारी पड़ता दिख रहा है.
3. 2004 के ओलिंपिक खेलों के लिए ग्रीस ने यूरो जोन से बड़ी मात्रा में कर्ज लिया था. माना जाता है कि सरकार ने ओलिंपिक के सफल आयोजन के लिए अनापशनाप खर्च किया, जिसके कारण मौजूदा संकट पैदा हुआ है. ओलिंपिक के लिए सिर्फ सात साल के दौरान ही लगभग 12 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए गए.
4. ग्रीस का राजकोषीय घाटा बहुत ज्यादा बढ़ गया था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने खातों में हेराफेरी करके आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था. 2009 में सत्ता में आयी नई सरकार ने इसका खुलासा किया. उस समय ग्रीस पर उसकी जीडीपी की तुलना में 113 फीसदी कर्ज था और यह यूरो जोन में सबसे ज्यादा था. एथेंस ओलिंपिक के समापन के कुछ महीनों के भीतर ही यूरो जोन को यह सच्चाई मालूम चल गई कि ग्रीस सरकार ने अपने खातों में हेरफेर की थी. यूरो जोन के सदस्यों को 2004 से ही उस पर शक था.
5. आंकड़ों में हेराफेरी की बात सामने आने के कारण ग्रीस पर भरोसे का संकट पैदा हो गया, इसके चलते इस संकटग्रस्त देश को कर्ज देने वाले देशों की संख्या काफी कम हो गई. इस दौरान यहां ब्याज दरें 30 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई.
6. मई 2010 में यूरो जोन, यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने ग्रीस को डिफॉल्ट से बचाने के लिए 10 अरब यूरो का राहत पैकेज दिया. यही नहीं जून 2013 तक उसकी वित्तीय जरूरतें भी पूरी की. ग्रीस के सामने सुधारों को लागू करने की शर्तें भी रखी गई थीं.
7. सख्त आर्थिक सुधारों को देखते हुए उसे दूसरा राहत पैकेज दिया गया. ग्रीस को दूसरे मौके में 130 अरब यूरो का पैकेज दिया गया. इसके साथ भी सुधारों की शर्तें जुड़ी हुई थीं.
8. भारी सुस्ती और राहत पैकेज की शर्तों को लागू करने में देरी के कारण दिसंबर, 2012 में ऋणदाता आखिरी चरण में कर्ज राहत देने को राजी हो गए. आईएमएफ ने भी उसे सहयोग दिया और जनवरी 2015 से मार्च 2016 तक ग्रीस को 8.2 अरब यूरो का कर्ज सहयोग मिला.
9. अभी ग्रीस की अर्थव्यवस्था कुछ रफ्तार पकड़ ही रही थी कि संसदीय चुनाव के बाद वामपंथी सिरिजा पार्टी इन वादों के साथ सत्ता में आ गई कि सरकार बनते ही बेलआउट की शर्तों को ठुकरा दिया जाएगा. इससे जनता की मुश्किलें और बढ़ गईं. यूरो जोन के देशों ने एक बार फिर ग्रीस को राहत देते हुए टेक्निकल एक्सटेंशन दिया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली. ग्रीस के सामने फिर से नई मुसीबत है और दुनिया ग्रीस संकट से उबरने की दुआ कर रही है.

एजेंसी

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