नई दिल्ली. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने 29 नवंबर को रिटायर हो रहे पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल राहिल शरीफ की जगह लेने के लिए 3 सीनियर जनरल की वरीयता दरकिनार करके लेफ्टिनेंट जनरल कमर जावेद बाजवा को अगला सेना प्रमुख चुन लिया है.
बाजवा पाकिस्तान के 16वें सेना प्रमुख होंगे और 29 नवंबर को राहिल शरीफ से पाकिस्तानी सेना की बागडोर संभालेंगे. नवाज़ शरीफ ने जनरल जुबैर महमूद हयात को ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ बनाया है जो 29 नवंबर को ही रिटायर हो रहे मौजूदा ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ जनरल राशिद महमूद की जगह लेंगे.
सेना प्रमुख चुनना अधिकार तो पीएम का है लेकिन चलती है आर्मी चीफ की सिफारिश भी
पाकिस्तान में आर्मी का चीफ चुनने का अधिकार यूं तो प्रधानमंत्री के पास है लेकिन चलती है आर्मी चीफ की ही. रिटायर होने वाले आर्मी चीफ अपनी पसंद के अफसर को सेना प्रमुख बनाने की सिफारिश करके जाते हैं. जनरल राहिल शरीफ ने अपने वारिस का नाम नवाज़ शरीफ को बताया है या नहीं, इस पर सस्पेंस है.
वरिष्ठता के लिहाज से पाकिस्तान सेना में पहला नाम मौजूदा चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल ज़ुबैर हयात का था. दूसरे नंबर पर मुल्तान कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल इशफाक नदीम थे. तीसरे नंबर पर बहावलपुर कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जावेद इकबाल रामदे थे.
वरीयता में तीन जनरल के बाद चौथे नंबर पर आते थे जनरल कमर जावेद बाजवा
नए आर्मी चीफ बनाए गए लेफ्टिनेंट जनरल बाजवा वरीयता के लिहाज से चौथे नंबर पर आते थे जो इस समय पाकिस्तान आर्मी में ट्रेनिंग और इवैल्यूएशन के इंस्पेक्टर जनरल हैं.
बाजवा की तरह ही राहिल शरीफ भी जब आर्मी चीफ बनाए गए थे तो वो इसी ट्रेनिंग और इवैल्यूएशन के आईजी थे. बाजवा भारत-पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर तैनात पाकिस्तान आर्मी की 10वीं कोर के कमांडर रह चुके हैं.
जनरल इशफाक नदीम थे जनरल राहिल शरीफ की पसंद
माना जा रहा था कि राहिल शरीफ की पसंद चली तो वरीयता में दूसरे नंबर पर रहे मुल्तान कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल इशफाक नदीम नए चीफ बनते.
लेफ्टिनेंट जनरल इशफाक नदीम का को राहिल शरीफ का पसंदीदा अफसर माना जाता है जिन्होंने ऑपरेशन ज़र्ब-ए-अज्ब का खाका तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी. नवाज़ शरीफ की मुश्किल ये थी कि लेफ्टिनेंट जनरल इशफाक ‘ब्लंट’ अफसर माने जाते हैं और अक्सर हाई लेवल मीटिंगों में सरकार को मुंह पर चार बातें सुनाकर बूट खटखटाते हुए निकल जाते थे.
राहिल शरीफ को भी कई जनरल की वरीयता को नजरअंदाज करके बनाया गया था आर्मी चीफ
2013 में नवाज़ शरीफ ने कई वरिष्ठ अफसरों को दरकिनार कर राहिल शरीफ को आर्मी चीफ नियुक्त किया था. उन्हें तब ये सहूलियत हासिल थी कि उस वक्त के आर्मी चीफ जनरल अशफाक परवेज़ कयानी ने किसी के नाम की सिफारिश नहीं की थी.
जनरल राहिल शरीफ को आर्मी ऑपरेशन का तजुर्बा ना होने के बावजूद नवाज़ शरीफ ने आर्मी चीफ बनाया और ये दांव चल गया. मतभेदों के बावजूद और कई बार माहौल बनने के बाद भी राहिल ने नवाज़ की सत्ता के लिए सीधे-सीधे कोई मुसीबत नहीं खड़ी की.
परवेज मुशर्रफ और जिया उल हक भी वरीयता लांघकर बने थे रावलपिंडी के राजा
ये सवाल लाख टके का है कि क्या इस बार सीनियॉरिटी नज़रअंदाज़ करना नवाज़ शरीफ के लिए मुसीबतें तो नहीं खड़ी करेगा. पाकिस्तान के इतिहास में इससे पहले ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने ऐसा एक्सपेरिमेंट किया था और कई अफसरों की वरिष्ठता नज़रअंदाज़ करके जनरल ज़िया उल हक को आर्मी चीफ बनाया. नतीजा पूरी दुनिया ने देखा.
1998 में नवाज़ शरीफ ने भी ऐसा ही किया था. जनरल परवेज़ मुशर्रफ को आर्मी चीफ बनाने का फैसला उनके लिए आत्मघाती साबित हुआ था. राहिल शरीफ का चयन अपवाद रहा लेकिन अब नया चीफ जब एनाउंस हो चुका है तो ये साफ हो गया है कि नवाज़ ने असहज रिश्तों वाले जनरल को दरकिनार करके चौथे नंबर वाले बाजवा को सेना प्रमुख चुन लिया है.
सिफारिश ना होना बाजवा के काम आया !
पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक राहिल शरीफ को नवाज़ ने इसलिए चुना था क्योंकि उनके लिए किसी ने सिफारिश या लॉबिंग नहीं की थी. दावेदारों में उनका नाम भी काफी नीचे चल रहा था.
उनका सिफारिशी ना होना नवाज़ को पसंद आया. इस बार जनरल बाजवा का नाम भी पीछे था. ऐसे में माना यही जा रहा है कि नवाज़ ने पुराना फॉर्मूला आजमाया और बाजवा को अपने लिए सबसे मुफीद माना.