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अमेरिका के नियंत्रण से आजाद हो गया इंटरनेट

नई दिल्ली. इंटरनेट की दुनिया अमेरिका के नियंत्रण से आजाद हो गई है. इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइंड नेम्स एंड नंबर्स (आईसीएएनएन) के साथ अमेरिकी वाणिज्य मंत्रालय का अनुबंध शनिवार को खत्म हो गया. आईसीएएनएन डोमेन मैनेजमेंट और आईपी एड्रेस वितरण जैसे काम संभालती है.
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अमेरिकी सरकार का एकाधिकार खत्म होने के बाद इसमें शिक्षाविद, विशेषज्ञ, नेटवर्क ऑपरेटर, निजी कंपनियों, उपभोक्ताओं, सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों का हस्तक्षेप बढ़ेगा. आईसीएएनएन के नियंत्रण मुक्त होने से उपभोक्ता सीधे तौर पर प्रभावित नहीं होंगे लेकिन इंटरनेट की दुनिया में स्थायित्व और पारदर्शिता के लिहाज से यह फैसला अहम है. इंटरनेट के भविष्य की तकनीकों और नीतियों पर इसका प्रभाव देखने को मिल सकता है.
कैलिफॉर्निया स्थित आईसीएनएन एक गैर लाभाकारी संगठन है. यह इंटरनेट का एड्रेस सिस्टम संभालती है. डोमेन नेम उपलब्ध कराना इसी संगठन का काम है. यह पूरी दुनिया में लाखों वेबसाइट ट्रैक करती है. अभी तक इस पर अमेरिका का नियंत्रण था.
अमेरिका के सहयोग से हुआ था गठन
दरअसल, इंटरनेट को संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर सरकारी संगठन से मुक्त रखने के लिए अमेरिकी सरकार ने वर्ष 1998 में आईसीएएनएन के गठन में सहयोग किया थी. इसमें सरकार के अलावा इंजीनियरों, नेटवर्क ऑपरेटरों और इंटरनेट यूजर तक का दखल है.
लेकिन, उस वक्त इस तरह के संगठन की कोई परंपरा नहीं थी और वैधता पर सवाल भी खड़े हो सकते थे इसलिए अमेरिका ने इंटरनेट एड्रेस की मास्टर सूची में बदलाव का अधिकार अपने पास रखा. उसने वादा किया कि संगठन के सक्षम होने के बाद वह हट जाएगा.
अमेरिकी नियंत्रण पर उठे सवाल
वर्ष 2013 में यह पता लगने के बाद कि अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी एजेन्सी ने दुनियाभर में इंटरनेट यूजर्स की जासूसी की है, अमेरिका पर आईसीएएनएन पर नियंत्रण खत्म करने का दबाव बढ़ा. साल 2014 में अमेरिकी सरकार इसके लिए तैयार हो गई लेकिन शर्त रखी की आईसीएएनएन वास्तव में स्वतंत्र हो और अन्य सरकारों, व्यावसायिक ताकतों के दबाव से निपटने के काबिल हो.
आईसीएएनएन के इस साल कई सुधार करने पर सहमत होने के बाद अमेरिका ने संगठन को नियंत्रण मुक्त करके पूरी जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया है. हालांकि, रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर टेड क्रूज और अधिकारियों ने इसका विरोध किया था. उनका कहना है कि अमेरिका के नियंत्रण छोड़ने से चीन, जापान औ रूस जैसे इसे अपने हाथ में ले सकते हैं.
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