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कश्मीर छोड़िए, बलूचिस्तान और कराची की फिक्र करिए मियां नवाज़

नई दिल्ली. दो दिन पहले नवाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर में बयान दिया कि उन्हें उस दिन का इंतज़ार है जब जम्मू-कश्मीर पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएगा. नवाज़ इस खामख्याली में ये भूल ही गए कि कश्मीर को हड़पने का सपना भी उन्हें तभी तक आएगा, जब तक पाकिस्तान बचा है. पाकिस्तान बचेगा कितने दिन, ये बड़ा सवाल है, जिसका जवाब नवाज़ के पास भी नहीं है.
बांग्लादेश भूल गया क्या पाकिस्तान ?
भारत बेशक पाकिस्तान के पुराने ज़ख्म नहीं कुरेदता लेकिन पाकिस्तान के ही एक बड़े पत्रकार हसन निसार आए दिन पाकिस्तान में नवाज़ जैसे उन लोगों को आईना दिखाते रहते हैं, जिन्हें कश्मीर को हड़पने का सपना आता है.
हसन निसार ने एक पाकिस्तानी चैनल पर कश्मीर पर बहस के दौरान कहा था- “क्यों बार-बार कश्मीर का ज़िक्र छेड़कर लोगों को बेवकूफ बनाते हो. अपने पास जो है, उसे तो संभाल नहीं सकते और बातें करते हैं कश्मीर लेने की. भूल गए क्या. ईस्ट पाकिस्तान किसके पास था? उसे क्यों नहीं बांग्लादेश बनने से रोक लिया..?”
अभी और बांग्लादेश बन सकते हैं !
पाकिस्तान के अंदरूनी हालात अब किसी से छिपे नहीं हैं और जो लोग भी पाकिस्तान के अंदरूनी हालात से वाकिफ हैं, उन्हें पता है कि अगर पाकिस्तान की नीति और नीयत नहीं बदली तो कई बांग्लादेश और बन सकते हैं. ऐसा हुआ तो सोचिए ना मियां नवाज़ कि तब कश्मीर को हड़पने का सपना देखने वाला पाकिस्तान दुनिया के नक्शे पर बचेगा क्या ?
बलूचिस्तान मांगे आज़ादी
पाकिस्तान के लिए आज की तारीख में सबसे बड़ा सिरदर्द बलूचिस्तान है जिसे पाकिस्तानी फौज ने 1947 में हड़प लिया था. कालात के खान के शासन वाले बलूचिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा बनाने के लिए ना तो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन किया गया और ना ही बलूचिस्तान के तत्कालीन शासकों और जनता की राय ली गई.
उस दिन से आज की तारीख तक बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का नाजायज़ कब्ज़ा है जिसके खिलाफ बलूच नेशनल आर्मी संघर्ष कर रही है. बलूचिस्तान में पाकिस्तानी फौज के नरसंहार की खबरें मानवाधिकार एजेंसियों के लिए चिंता का विषय हैं. हर साल एमनेस्टी इंटरनेशनल और ह्यूमन राइट्स वॉच जैसी तटस्थ एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि बलूचिस्तान में दमन चक्र चल रहा है.
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पाकिस्तान से निर्वासित तारेक फतेह बताते हैं कि बलूच लोगों का कत्ल करके पाकिस्तानी फौज उनकी लाशें बलूचिस्तान के बीहड़ों में फेंक देती है. मानवाधिकार कार्यकर्ता प्रोफेसर नाइला क़ादरी बलूच तो आंकड़े भी गिना चुकी हैं.
प्रोफेसर नाइला के मुताबिक 2000 से 2016 के दरम्यान पाकिस्तानी फौज ने बलूचिस्तान में कम से कम 2 लाख लोगों की हत्या की है जबकि 25 हज़ार से ज्यादा बलूच नागरिक लापता हैं. क्या पता, वो भी बलूचिस्तान के बीहड़ों में कहीं दफन कर दिए गए हों.
खुद मियां फज़ीहत…!
ये उस बलूचिस्तान का हाल है, जहां पाकिस्तानी फौज, पाकिस्तान की सरकार और आतंकवादियों की सरपरस्ती के लिए कुख्यात आईएसआई अपने कुकर्मों के लिए भारत पर इल्ज़ाम लगाती रही है.
सच्चाई ये है कि बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रही बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के नेता हैरबाएर मारी ने पिछले साल ही भारत से अपील की थी कि वो बलूचिस्तान को पाकिस्तान के नापाक कब्ज़े से आज़ाद कराने में मदद करे. नाइला क़ादरी बलूच भी बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए मदद मांगने के लिए इसी साल भारत आई थीं.
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बलूचिस्तान में अशांति के लिए भारत पर तोहमत लगाने वाला पाकिस्तान क्या अब भी गफलत में है? बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं उतनी ही जघन्य हैं, जितनी 70 के दशक में पूर्वी पाकिस्तान में थीं.
तब पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने भारत से मदद और पनाह मांगी थी और मजबूरी में भारत ने जो कदम उठाया, उससे दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश नाम का नया मुल्क उभर आया था.
पाकिस्तान को इतनी सी बात समझ में नहीं आ रही कि अगर भारत ने बलूचिस्तान के लोगों की थोड़ी सी मदद कर दी तो पाकिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान सीमा पर बलूचिस्तान नाम का नया देश पैदा हो जाएगा.
गिलगिट-बाल्टिस्तान और पीओके
पूरी दुनिया को ये ऐतिहासिक सच्चाई मालूम है कि पाकिस्तान आज गिलगिट-बाल्टिस्तान नाम के जिस हिस्से पर काबिज़ है, वो महाराजा हरि सिंह के जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा था और महाराजा हरि सिंह ने कानूनी दस्तावेज़ पर दस्तखत करके पूरे जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाने की हामी भरी थी.
बेशकीमती खनिज पदार्थों से भरे गिलगिट-बाल्टिस्तान पर भी पाकिस्तान ने अपनी फौज के दम पर अवैध कब्ज़ा कर रखा है. गिलगिट-बाल्टिस्तान के लोग भी नापाक कब्ज़े के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं.
पिछले साल गिलगिस्ट-बाल्टिस्तान के नेता सेंगे हसनैन सेरिंग ने कहा था- “गिलगिट बालिस्तान के लोग जम्मू-कश्मीर के नागरिक हैं. हम सब चाहते हैं कि गिलगिट-बाल्टिस्तान भारत के पास रहे. अगर भारत एलओसी को इंटरनेशनल बॉर्डर बनाना चाहता है तो वैसे में बेहतर होगा कि गिलगिट-बाल्टिस्तान को आज़ाद मुल्क ही बना दिया जाए.”
रहा सवाल पाकिस्तानी कब्ज़े वाले कश्मीर के बाकी हिस्से यानी पीओके का तो पीओके में पाकिस्तानी फौज की बेतहाशा मौजूदगी के बावजूद वहां पाकिस्तान के खिलाफ हर दूसरे-तीसरे दिन आवाज़ बुलंद होती है जिसे पाकिस्तानी फौज अपने बूटों तले दबाने की कोशिश में जुट जाती है.
सवाल ये है मियां नवाज़ कि आखिर कितने दिन? कितने दिन तक फौज के ज़ुल्म के दम पर पीओके पर पाकिस्तान अपना अवैध कब्ज़ा कायम रख पाएगा? वहां के लोग तो बस इंतज़ार कर रहे हैं कि किस दिन भारत के सब्र का बांध टूटे और उस सैलाब में बह जाए पाक फौज का ज़ुल्म और कश्मीर को हड़पने का नापाक ख्वाब.
कराची का क्या होगा, कभी सोचा है ?
कश्मीर पर बुरी नज़र और नापाक नीयत रखने वाले पाकिस्तान के हाकिमों को कराची के हालात भी नहीं दिख रहे. बंटवारे के बाद भारत से जाकर पाकिस्तान में बसे मुहाजिरों की हालत बद से बदतर हो चुकी है. मुहाजिरों की आवाज़ दबाने में जब कराची पुलिस नाकाम हो गई तो पाकिस्तानी फौज अब रेंजर्स के दम पर कराची को कंट्रोल में रखने की कोशिश कर रही है.
तरीका वही है, जो बलूचिस्तान में आज़माया जा रहा है. पाकिस्तानी रेंजर्स मुत्ताहिदा (पहले मुहाजिर) कौमी मूवमेंट यानी एमक्यूएम के नेताओं को हिरासत में लेते हैं और फिर मार डालते हैं.
एमक्यूएम भी अब यही चाहता है कि भारत दखल दे और कराची को पाकिस्तान के ज़ुल्मों से आज़ादी दिला दे. 18 जून, 2015 को एमक्यूएम सेंट्रल कमेटी के सदस्य और पाकिस्तानी सीनेट के मेंबर नसरीन जलील ने पाकिस्तान में भारत के हाई कमिश्नर को चिट्ठी तक लिख दी थी कि भारत कुछ तो करे.
सुधर जाओ पाकिस्तान, वरना…!
पाकिस्तान बग़ावत के बारूद पर बैठा है. इस बारूद में विस्फोट करने के लिए भारत की मदद के रूप में छोटी सी चिनगारी काफी है. फिर भी पाकिस्तान अगर कश्मीर को हड़पने का नापाक मंसूबा ही पाले बैठा है तो फिर इस नसीहत के अलावा और क्या कहा जा सकता है कि सुधर जाओ पाकिस्तान, वरना ना तो पाकिस्तान बचेगा और ना ही उसके नापाक ख्वाब.
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