नई दिल्ली. भारत की गीता को पाकिस्तान में पनाह देने वाले, समाजसेवी अब्दुल सत्तार ईदी का शुक्रवार रात कराची में निधन हो गया. वो 88 साल के थे. वे ईदी फाउंडेशन के संस्थापक थे. इदी के निधन पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने शोक प्रकट किया है. साथ ही शरीफ ने ईदी को पाकिस्तान के सबसे बड़े नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज से नवाजे जाने का ऐलान किया है.
ईदी के पुत्र फैसल ने कहा कि उनके पिता की इच्छा थी कि उन्हें उन्हीं कपड़ों में दफनाया जाए, जो वह पहने हों. फैसल ने बताया कि उनके पिता ने पच्चीस साल पहले ईधी विलेज में अपनी कब्र तैयार की थी. उन्हें वहीं दफनाया जाएगा. फैसल ने उनकी मौत के बाद अस्पताल के बाहर कहा कि उनके पिता की डायलिसिस के दौरान सांस रुकने लगे थी, जिसके बाद उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था.
अब्दुल सत्तार ईदी का जन्म अविभाजित भारत के गुजरात में 1 जनवरी 1928 को हुआ था. वो 1947 में बंटवारे के बाद पाकिस्तान आ गए थे. उनकी इच्छा के मुताबिक उनकी आंखें दान कर दी गई हैं. 2013 में उनकी दोनों किडनियों ने काम करना बंद कर दिया था. खराब स्वास्थ्य के चलते किडनी का ट्रांसप्लान्ट नहीं कराया जा सका. उनका सिंध इंस्टीट्यूट ऑफ यूरोलॉजी एंड ट्रांसप्लांटेशन में इलाज चल रहा था.
एक घटना ने उनका पूरा जीवन ही बदल दिया. उनकी मां को पैरालेसिस हो गया था और वे मानसिक रूप से बीमार हो गई थीं. सरकार की तरफ से कोई मदद न मिलने से वे इतने आहत हुए कि उन्होंने खुद को परोपकार में लगा दिया. उन्होंने उच्च आदर्शों से प्रेरित होकर 1951 में कराची में क्लीनिक खोला. ईदी और उनकी टीम अनाथों, असहायों के लिए मैटरनिटी होम, वृद्धों के लिए वृद्धाश्रम बनवाते रहे. उनका मकसद था, जो लोग अपनी मदद खुद नहीं कर सकते, उनकी मदद करो. ईदी ने वर्ष 1957 में कराची में एम्बुलेंस सेवा और डिस्पेंसरी सेवा शुरू की थी.