वाशिंगटन. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के मुख्य मुकाबले में उतरने को तैयार रिपबल्किन डोनाल्ड ट्रंप के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे कम पड़ गए हैं जबकि डेमोक्रेट हिलेरी क्लिंटन की झोली भरी हुई है. मई के अंत में ट्रंप के पास 13 लाख डॉलर बचे थे तो हिलेरी के पास 4 करोड़ 20 लाख डॉलर.
रिपब्लिकन पार्टी का टिकट झटकने को तैयार डोनाल्ड ट्रंप का अब तक का सफर विवाद और अचरच भरा रहा है. विवाद होते गए और वो एक के बाद एक प्राइमरी जीतते गए. लेकिन अब जब राष्ट्रपति चुनाव की औपचारिक लड़ाई शुरू होगी तो उन्हें पैसे, कार्यकर्ता और संगठन की सबसे ज्यादा जरूरत होगी.
रिपब्लिकन पार्टी के नेतृत्व से चल रहे गतिरोध को दूर करने के लिए ट्रंप ने अपने कैंपेन मैनेजर को भी दो दिन पहले हटा दिया क्योंकि पार्टी के प्रमुख ने ऐसा इशारा किया था कि उनके रहते बात नहीं बनेगी. ट्रंप के बेटे भी चाहते थे कि ट्रंप का कैंपेन मैनेज कर रहे कोरे लेवांड्वोस्की को हटा दिया जाए. ट्रंप के प्रचार काम काम अब मुख्य रणनीतिकार पॉल मानाफॉर्ट देख रहे हैं.
राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए बहुत सारा पैसा चाहिए. इन पैसों से चुनाव के लिए काम कर रहे स्टाफ और कार्यकर्ताओं को पगार मिलेगी. इसी पैसे से टीवी, अखबार और वेबसाइट पर एड खरीदे जाएंगे. इसी पैसे से दूसरे तरह के प्रचार माध्यमों में अपने नेता का नाम फैलाया जाएगा. समर्थकों के लिए कपड़े, टोपी, झंडा, बैनर, हर चीज के लिए पैसा चाहिए.
ट्रंप के पास मात्र 60 स्टाफ, हिलेरी के पास हैं 600 से भी ज्यादा
ट्रंप ने मैदान से हट चुके रिपबल्किन दावेदारों के साथ-साथ हिलेरी क्लिंटन के मुकाबले अभी तक काफी कम पैसा खर्च किया है. ट्रंप की टीम में सिर्फ 60 स्टाफ हैं जबकि हिलेरी क्लिंटन के चुनाव प्रचार में 600 से ज्यादा स्टाफ काम कर रहे हैं.
डेमोक्रेटिक पार्टी का संगठन रिपब्लिकन के मुकाबले मजबूत है जिसकी असल में अब बहुत जरूरत होगी. वोटरों को कॉल करना, जो वोटर हैं उन्हें वोटिंग के लिए तैयार करना, जो लोग मन नहीं बना सके हैं उनके पीछे पड़ना और उन्हें वोट के लिए मनाना, ये सब ऐसे काम हैं जिसके लिए पैसा और आदमी चाहिए. ट्रंप के पास फिलहाल दोनों की किल्लत है.
हिलेरी से टकराने के लिए ट्रंप को चाहिए कार्यकर्ता और बहुत सारा पैसा
रिपब्लिकन पार्टी अब जाकर ट्रंप को इस मोर्चे पर मदद के लिए तैयार होती दिख रही है लेकिन पार्टी का संकट ये है कि 2008 और 2012 में भी उसका संगठन कमज़ोर था. ट्रंप की मजबूरी है कि हिलेरी से जीतना है तो उन्हें हिलेरी की टक्कर में पैसा और संगठन दोनों चाहिए. इस वक्त ट्रंप का कैंपेन असंगठित और बेहाल है.
पार्टी के कई नेता जो ट्रंप के साथ आ गए थे वो फिर ट्रंप के भड़काऊ बयानों से ठंडे पड़ रहे हैं. ऑरलैंडो में नरसंहार के बाद ट्रंप ने फिर अमेरिका में मुसलमानों के आने पर रोक की बात दुहराई थी और ये भी कहा था कि अमेरिकी मुसलमानों को ऐसे हमलों के बारे में पहले से पता होता है.
ट्रंप को भी लगता है कि जब बिना बहुत पैसे खर्च किए और पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध के बावजूद वो यहां तक पहुंच चुके हैं तो आगे उनको पार्टी नेतृत्व की क्यों सुननी चाहिए. ट्रंप अब तक अपने प्रचार पर खुद का पैसा और चंदे का पैसा खर्च करते आए हैं लेकिन आगे उन्हें बहुत सारा चंदा चाहिए.
इसके लिए ट्रंप को अपना रवैया बदलना होगा क्योंकि वो कहते रहे हैं कि वो चंदा देने वालों के नौकर नहीं हैं. चंदा देने वाले इस तरह के बयान के बाद उनकी मदद नहीं करेंगे और चुनाव में अगर वो अपना पैसा लगाएंगे तो कंगाल हो जाएंगे.
आगे ये देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप कैसे पार्टी के साथ तालमेल बिठाकर संगठन का इस्तेमाल अपने प्रचार में करते हैं और किस तरह पार्टी को या उनको चंदा देने वालों को साथ लाते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए बहुत सारा पैसा चाहिए, ये ट्रंप को पता है. ट्रंप को ये भी पता है कि उनके पास इतने पैसे नहीं हैं. बाकी ट्रंप की लीला कोई नहीं जानता.
(अंशुल राणा आईआईएमसी से रेडियो और टीवी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद कई समाचार चैनलों और अंतराष्ट्रीय अखबारों में काम करने के बाद फिलहाल जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में विजिटिंग रिसर्च एसोसिएट और वर्ल्ड बैंक में सलाहकार हैं.)