प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा पर पूरे देश की निगाह लगी है, लेकिन इस बीच जानकारी मिल रही है कि इस यात्रा के दौरान सीमा विवाद को हल करने की दिशा में किसी बड़े नतीजे की बिल्कुल उम्मीद नहीं है. सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक़ सीमा विवाद बातचीत के एजेंडे में तो शामिल है, लेकिन इस पर कोई ख़ास प्रगति होने नहीं जा रही.
शियान. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा पर पूरे देश की निगाह लगी है, लेकिन इस बीच जानकारी मिल रही है कि इस यात्रा के दौरान सीमा विवाद को हल करने की दिशा में किसी बड़े नतीजे की बिल्कुल उम्मीद नहीं है. सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक़ सीमा विवाद बातचीत के एजेंडे में तो शामिल है, लेकिन इस पर कोई ख़ास प्रगति होने नहीं जा रही.
सूत्र का यह भी कहना है कि भारतीय इलाक़े में चीनी सैनिकों के घुस आने की कई वारदातों के बाद भी दोनों देशों के बीच सीमा पर शांति है और सन 1975 के बाद से कोई जान नहीं गई है, यह एक बड़ी उपलब्धि है. सीमा विवाद सुलझाने के लिए दोनों देशों के स्पेशल रिप्रजेंटेटिव की हाल ही में एक और दौर की बातचीत हुई थी, जो एनडीए सरकार बनने के बाद की पहली बातचीत थी. विवाद हल करने के लिए फ्रेमवर्क ढूंढा जा रहा है और फिर एलएसी के डिफाइन और डिमार्केशन पर बात आगे बढ़ेगी. हालांकि यह इस दौरे में नहीं होगा.
यह पूछे जाने पर कि प्रधानमंत्री मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिंनपिंग के साथ वन टू वन बातचीत में क्या सीमा विवाद हल करने पर ज़ोर देंगे, सूत्र का कहना है कि जब दोनों राष्ट्रध्यक्ष मिलेंगे तो लटके पड़े हर मुद्दे पर बातचीत होगी. चीन की यात्रा करने वाले अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को स्टैपल वीज़ा दिए जाने का मुद्दा भी बातचीत में उठेगा, लेकिन इस पर भी चीन की तरफ से कोई बड़ा भरोसा मिलने की उम्मीद नहीं है.
दरअसल भारत और चीन विवाद के मुद्दों से अलग हट कर आर्थिक रिश्तों को आगे बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहते हैं. भारत की कोशिश चीन के साथ रिश्ते को ऐसे आगे बढ़ाने की होगी, जिससे व्यापार घाटा कम किया जा सके जो फिलहाल 45 बिलियन डॉलर का है. भारत की कोशिश भारत में चीनी निवेश को आकर्षित करने की है ताकि ढांचागत विकास की प्रक्रिया को तेज़ किया जा सके.
IANS